बात कुछ यूँ है कि हम गए थे नेशनल चम्बल सैंक्चुअरी की सैर को, ऑफ सीजन में, माने अप्रेल में। तब बाहर से आई मेहमान चिड़ियाएं अपने घर को लौट जाती हैं और रह जाते हैं बस वहां के देसी जीव। इसी के साथ तोपनुमा लेंस वाले देसी-विदेशी महा-बर्डर्स भी गायब हो जाते हैं.
तो जब हम गए तो हम थे चार प्राणी – हम दो हमारे दो , जिसमे सबसे छोटा था तब चार साल का. उसे पक्षियों को देखना नहीं पसंद था , क्यूंकि उसके छोटे हाथों में दूरबीन बड़ी होती थी, हिलती थी, और ठीक से सेट नहीं होती थी. कुल मिला कर उसे कोई चिड़िया दूरबीन से दिखती नहीं थी. वैसे अभी तो उमर भी नहीं थी चिड़िया टापने की। ( मैंने जो लिखा है वही मतलब है – दूसरा कोई अर्थ नहीं )
लेकिन ये ट्रिप उसे बहुत पसंद आया था. नाव की सवारी और बड़े बड़े पक्षी जैसे सारस, स्टोर्क, करवनक (थिकनी), जांघिल, गुंगिल ; और मगर और घड़ियाल तो नज़दीक से दीखते थे। और एक पुरातन पंथी कैमरा था उसके हाथ में जिससे वो सारे बिना फोकस वाले फोटो खींचता रहा था. कुछ कुछ फोकस भी हो जाते थे. कुल मिला कर सब ठीक जा रहा था।
तो ऐसी ही एक सुबह की सफारी में हम पहुंचे नदी के बीच निकले रेतीले टापू के नज़दीक। घड़ियाल, महा आलसी – बेपरवाह पड़ा था और उसके आस पास फलाना, ढिकाना, पूंछना चिड़ियाएं फुदक रही थी। हम भी निकले थे उसके यथासंभव करीब से मगर मज़ाल कि उसकी मोटी चमड़ी पर कोई फर्क पड़ा हो।
मुझे बच्चों पे गलत असर पड़ने का भय सता रहा था और उन्हें उसे देखते रहने में मज़ा आ रहा था। कुछ भी कहें, बुरी आदतों के लिए बच्चों में स्वाभाविक चुम्बक होता है और माँ बाप में इनबिल्ट होती है खतरे की घंटी, जो बस माँ बाप बनते ही बजना चालू रहती है।
वहां से धकियाया तो आगे वाले रेतीले टापू पर लगा था पनछीरा (इंडियन स्किम्मर) का जमावड़ा। भई क्या दृश्य था ! एक साथ उड़ती , फिर पानी पर किसी ग्लाइडर से भी बढ़िया तरीके से ग्लाइड करती, पलक झपकते ही मछली हाथ में, अररर मुंह में और स्किम्मर आसमान में।
हाँ ये अच्छा था बच्चों के लिए। उनकी चुस्ती-फुर्ती और मेहनत देख अवश्य कुछ सीखेंगे। तो मैंने ज्ञान का गीता-पाठ चालू किया।
” ये देख रहे हो न इसकी चोंच का नीचे वाला होंठ बड़ा है और ऊपर वाला छोटा। तो ये जब पानी पर ग्लाइड करती है न तो नीचे वाला होंठ पानी की सतह पर रगड़ते हुए ग्लाइड करती है। खाना मुंह में आते ही फट से मुंह बंद। कितनी मेहनत से खाना मिलता है इन्हे और नखरे भी नहीं लगाती खाने में। “
“कैसे नहीं लगाती नखरे ? आप ने तो बताया था कि सब चिड़ियों की खाने की पसंद अलग अलग होती है। “
“ये बच्चों को हमेशा एक बात को दूसरी अन-रिलेटेड बात से क्यों जोड़ना होता है ?” मनीष से इशारों में पूछा।
“क्योंकि जो मां-बाप हैं वो पति-पत्नी भी तो हैं। और झगड़ा जब हो रहा हो तो यही गुण सबसे अधिक काम आता है झगडे को बढ़ाने में – कहीं का तार कहीं जोड़ना और फिर विस्फोट। ( ये तकनीकी ज्ञान इंजिनीयर के साथ रहते रहते आ ही गया है मुझे भी )। बच्चे भी सीख ही लेते हैं जाने अनजाने। आखिर उन्हें भी तो पति-पत्नी बनना है भविष्य में। ” मनीष ने मीनिंगफुल मुस्कान बिखेरते हुए बुदबुदाया। अभी झगड़ा हो रहा होता तो मैं लिखती – बड़बड़ाया !
“उनमे राडार और एंटी-कोलिजन यंत्र भी उम्दा लगे हैं। ” मैंने बात पलटी।
“हमारे बोईंग तो खाली पड़े रनवे पर, सारी मशीनो और आदमियों के सिग्नल के बाद भी इधर उधर बहक जाते हैं। पार्किंग में जाते वक्त पास खड़े दूसरे विमान के कन्धों से टकरा जाते हैं। एक कबूतर आ जाये सामने तो घायल हो जाते हैं।”
ये बच्चों को उनके पिताजी को अध्यात्म का पाठ पढ़ाने का अच्छा समय था।
” देखा ! भगवान् जी ने इन्हे कितना एडवांस बनाया है हमसे। एक हम हैं कि अपने सामने दूसरों को कुछ समझते ही नहीं। इन्हे देखो – सब एक साथ रहती हैं, उड़ान भरती हैं लेकिन आपस में टकराती नहीं। “
“और देखो , रिवर टर्न और ये कैसे साथ रह रही हैं मगर कोई झगड़ा नहीं। “
तभी चिड़ियों ने दिखा दिया कि वे जंगली हैं। एक नर को मादा रास आ गई और दोनों ने मिलके वहीं बैडरूम बना लिया।
तभी गाइड साहेब जोश से बोले – ” इधर देखिये मैडम ! ये टर्न मुंह में मछली लेके अपनी मादा (महबूबा ) को उपहार देकर पटाने जा रही है। “
उधर मनीष बोले – ” जयश्री , स्किम्मर मेटिंग कर रही है। पहले इधर फोटो लो। “
अब क्या वोयर ( voyeur )बन जाऊं ?
तो इस हड़बड़ी में नाव में खड़ी हो गई तो नाविक ने चेताया – “नाव का बैलेंस बिगड़ जाएगा। आप बैठ जाएँ।” और दो तरह की नैतिक दुविधा में दोनों ही की तस्वीरें बिगड़ गई।
दुविधा में दोउ गए , स्किम्मर मिली न टर्न !