कर्णाटक राज्य के बेलूर तालुक- जिला हासन में स्थित है बेलूर का चेन्नाकेशव मंदिर। भगवान् विष्णु समर्पित ये मंदिर अपने असाधारण लेथ स्तम्भों, विशिष्ट मदनिका मूर्तियों, अचम्भित कर देने वाले मकर तोरण के लिए जाना जाता है.
सुबह और शाम की ढलती रौशनी में इसका सौम्य रूप सुकून देता है. चेन्ना अर्थात प्यारा/मनोहारी/सुन्दर और केशव यानि कृष्ण। जितना इसका नाम मनोहारी है, उतना ही ये मंदिर भी.
होयसाला वंश द्वारा बनाये गए अनेकों मंदिरों में से प्रमुख हैं बेलूर का चेन्नाकेशव मंदिर, हैलेबिडु का होयसालेश्वर मंदिर और मैसूर के नजदीक सोमनाथपुर का चेन्नाकेशवा मंदिर। इन मंदिरों को देखे बगैर आपकी कर्णाटक यात्रा अधूरी रहेगी।
ये एक नियमित पूजित मंदिर है, तो श्रद्धालुओं का रेलमपेला लगा रहता है. कुछ लोग सिर्फ पर्यटन के लिए आते हैं, कुछ सिर्फ भगवान् के लिए. मेरे लिए यहाँ दोनों है.
बेलूर का चेन्नाकेशव मंदिर किसने बनवाया
होयसाला वंश के प्रतापी राजा विष्णुवर्धन ने इस मंदिर का निर्माण 1117 CE में शुरू किया था. आज हम जिस गोपुरम ( मंदिर प्रांगण का प्रवेश द्वार ) से प्रवेश करते है वह बाद में बनाया गया.
होयसाला मंदिरों का स्थापत्य प्लान
जैसा कि मैंने आपको पिछली पोस्ट में बताया था – होयसला मंदिरों का प्लान सरल होता है- अंदर प्रवेश करने के लिए एक छोटा पोर्च, फिर एक मंडप और मंडप एक छोटे से अंतराल जिसे सुकनासी कहते हैं, से गर्भगृह से जुड़ा होता है. यहाँ भी यही प्लान है.
चेन्नाकेशव मंदिर के भीतर
प्रांगण पार करके जब आप मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं तो होयसला राजवंश के प्रतीक चिन्ह ‘शेर को काबू में लेते हुए साला युवक ‘ आपको होयसाला की याद दिलाते हैं.
मंदिर का मंडप/ हॉल और लेथ पिलर
मंडप में भीतर प्रवेश करने पर आप ठिठक जाते हैं. यहाँ के मंडप/ हॉल जिन स्तम्भों पर खड़ा है, वे अपने आप में किसी विशिष्ट शिल्प से कम नहीं है. सच पूछिए तो इन स्तम्भों पर की गई लेथ तराशी इतनी उत्कृष्ट है कि लगता है पत्थर पर गोलाई नहीं बल्कि कोमल कलाई में कंगन पहने हों किसी ने.
दो पिलर – मोहिनी पिलर और नरसिम्हा पिलर के लिए तो कुछ लिखना संभव नहीं।आप चित्रों में देखिए। ये भी याद रखियेगा कि ये आज से नौ सौ साल पहले हुआ जब विद्युत् चलित लेथ मशीन नहीं थी.
गर्भ गृह का तोरण
अंदर बिराजे चेन्नाकेशवा तो मनोहारी हैं ही, गर्भ गृह के बाहर द्वार पर बने तोरण से आँखे हटाना कठिन है. मंडप में बैठ जाइये और इस तोरण द्वार को अवश्य बारीकी से देखिये।
कौन अधिक आकर्षक है?
भला भक्त और भगवान् में कोई द्वैत है ? नारायण ने नर बनाया , उसी नर ने नारायण की दी हुई चेतना, कला प्रतिभा से उसकी स्तुति गाई – चाहे वाणी से भजन गाकर या फिर पत्थरों में उसकी स्तुति और याद में दोहे गढ़ कर. नर और नारायण का यही आख्यान इस देश के हर ह्रदय में धड़कता है, चाहे वो ह्रदय स्वयं इससे अनजान बिना फिरे।
दर्पण में हम न झांके तो छवि दिखे तो कैसे दिखे ? और झांक लें तब भी छवि न दिखे तो दर्पण पर जमी धूल को दोष दें, दर्पण को नहीं।
भारतीय मनीषा में इस धूल को हटाने के सभी तरीके स्वीकार्य हैं- तीरथ व्रत से लेकर भक्ति भाव से कीर्तन पूजन तक , तो चिंतन मनन से लेकर जप तप और ध्यान तक. उसके दरबार में नास्तिक, आस्तिक और तटस्थ भी तो सगुणी और निर्गुणी भी. कैसे भी चले, कोई भी डगर लें, बस चलें। किसी घाट से अपनी नौका उतारे , बस पाल खोल दें.
तो फिर से लौटूं चेन्नाकेशव के मनोहारी मंदिर में –
अतुलनीय वैभव भरी कोष्ठ-छत
मंदिर के मंडप में बनी भीतरी छतों पर भी इतना ही वैभव है. गर्भ गृह के सामने बानी इस छत के कोष्ठ को समय समय पर प्रकाश दाल कर दिखाया जाता है. मंदिर में भीतर मंडप में प्रकाश बहुत कम है तो इस कृत्रिम प्रकाश में ही इसे देख सकते हैं.
गर्दन को जिराफ की तरह लम्बा करना पड़ता है इसे निहारने को. जब पहली बार प्रकाश में इसे देखा तो यकीन जानिए, वहां खड़े सभी मनुष्यों के मुंह से एक साथ आश्चर्य विस्मित वाह ! की ध्वनि निकली थी.
बीच में कमल-कलिका पर बने भगवान् नरसिम्हा और पूर्ण छत कोष्ठ में उकेरे गए अत्यंत बारीक़ शिल्प – विश्वास नहीं होता कि ये पत्थर है, चन्दन की लकड़ी नहीं।
बेलूर की कमनीय मदनिकाएँ
लेकिन वैभव तो और भी है इस मंदिर में – बाह्य छत के नीचे बानी सजीली युवतियों के शिल्प, जिन्हे मदनिका कहते हैं. जैसा नाम वैसा ही रूप ! 38 मदनिकाएँ है यहाँ !!
बाह्य दीवार पर शिल्प
अभी भी वैभव का बखान पूर्ण नहीं हुआ है. बाह्य दीवारों पर ही उत्कीर्ण हैं भगवान् विष्णु के अवतारों और उनसे जुडी घटनाओं के शिल्प। इतने कि किताबें लिखीं जा सकें उन पर और भरा जाए कैमरे का बड़े से बड़ा मेमोरी कार्ड भी.
फिर भी मन ना भरा था होयसाला शिल्पियों का तो जो मंदिर के हॉल को कवर करती छिद्रमय दीवारे हैं उन्हें भी कला-शिल्पों से दुल्हन की तरह सजा दिया। या कहूं कि दुल्हन की झीनी , रत्न-जड़ित चुनरी जो दुल्हन के लावण्य को छुपाये भी और दिखाए भी।
और क्या क्या बताऊँ भला ? “हरि अनंत हरि कथा अनंता” के सदृश्य ही भारत का प्राचीन वैभव अनंत और उसका बखान अनंत !
बेलूर चेन्नाकेशव मंदिर कहाँ है
ये मंदिर कर्णाटक राज्य के हासन जिले के बेलूर गांव में है. हासन बंगलौर से 180 किलोमीटर की दूरी पर है. और हासन से बेलूर 40 km है.
बेलूर और हैलेबिडु के होयसाला वंश द्वारा निर्मित इन भव्य मंदिरों को देखने के लिए आप हासन में रुके तो बेहतर होगा।