- Art-historical importance of Mahabalipuram
- Visiting Mahabalipuram with kids
- महाबलीपुरम यात्रा गाइड
महाबलीपुरम यात्रा गाइड में आप पढ़ सकते हैं-
- महाबलीपुरम कहाँ है?
- महाबलीपुरम का इतिहास
- महाबलीपुरम में क्या देखें
- महाबलीपुरम के गुफा मंदिर
- महाबलीपुरम के रथ मंदिर
- महाबलीपुरम का तटीय मंदिर
महाबलीपुरम कहाँ है
चेन्नई से साठ किमी दूर, बंगाल की खाड़ी के साथ चलती ईस्ट कोस्ट रोड से हम महाबलीपुरम पहुँचते हैं जिसे भारत की यूनेस्को हेरिटेज साइट में सम्मिलित किया गया है. चेन्नई और पांडिचेरी से इसे लोग वीकेंड ट्रिप की तरह घूमने आते हैं. यहाँ घूमने के लिए एक-दो दिन ठीक रहते हैं.
महाबलीपुरम का इतिहास
महाबलीपुरम को मम्मलपुरम भी कहा जाता है. महाबलीपुरम के सभी monument पल्लव वंश के शासकों द्वारा बनवाये गए थे, जिनकी सत्ता शुरू हुई लगभग तीसरी-चौंथी ईस्वी सदी में, और कांचीपुरम जिनकी राजधानी रही. पल्लवों ने 400 वर्षों तक इस भूभाग पर राज्य किया और उसके बाद तंजावुर के चोला वंश ने इनको हराकर इसे अपने राज्य का भाग बनाया।
महाबलीपुरम कैसे घूमें
महाबलीपुरम के प्राचीन स्मारकों को हम तीन ग्रुप में रख सकते है
- रॉक-cut गुफा मंदिर और एकल शिल्प-पैनल।
- एक चट्टान से बने मंदिर, जो रथ के नाम से ख्यात हैं
- शोर टेम्पल, समुद्र के किनारे बना मंदिर।
महाबलीपुरम के रॉक-cut गुफा मंदिर और एकल शिल्प-पैनल।
(1). महाबलीपुरम में दर्शक सबसे पहले अर्जुन पैनल को देखते हुए अपने टूर प्रारंभ करते है. चट्टान पर शिल्प जो किसी गुफा या मंदिर का भाग नहीं, स्वतंत्र रूप से अपने आप में ही पूर्ण है. पहले इसे ‘भागीरथ की तपस्या’ समझा जाता था लेकिन अब कला-इतिहासविद इसे ‘अर्जुन की तपस्या’ पैनल के रूप में व्याख्यित करते हैं.
दर्शक के लिए इस पैनल को सराहने के लिए लेकिन ये इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि ये अर्जुन की तपस्या है या भगीरथ की.
मामल्ला शिल्पी की कला पूरे भारत में अद्वितीय है. यहाँ शिल्पी ने मनुष्य और पशु दोनों को ही असलकद में बनाया है जो और कहीं देखने को नहीं मिलता।
इस पैनल के हाथी तो हर तरह से अनन्य हैं- पूर्णतः असल कद में, विभिन्न भाव में, वयस्क और शिशु हाथी, खेलते, दौड़ते, उठते-बैठते और चिंघाड़ते।
(2). इसी के पास एक और रॉक-कट पैनल है कृष्ण-मंडप, जिसमे कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठा लेने की घटना को दर्शाया गया है.
इस पैनल को सम्पूर्ण भारतीय शिल्प कला में कृष्ण के गोवर्धन गिरिधारी रूप का सर्वश्रेष्ठ शिल्प माना जाता है.
(3). कृष्ण मंडप के साथ ही बना है एक अन्य रॉक कट गुफा मंदिर- जिसे पंचपांडव मंदिर के नाम से जाना जाता है.
(4 ). अर्जुन पैनल के पीछे एक बाउंड्री से सुरक्षित परिसर है जिसमे कृष्णा बटर बॉल नामक बेहद बड़ी, नजाकत से टिकी चट्टान के अलावा कई अन्य बड़े ही सुन्दर monuments हैं-
सबसे पहले आप देखेंगे गणेश रथ जो मूलतः शिव मंदिर था लेकिन कुछ पचास साठ साल पहले स्थानीय लोगों ने इसमें गणेश की प्रतिमा स्थापित की थी.
ये गुफा मंदिर नहीं होकर पूर्णतः स्वतंत्र rock cut मंदिर है.
इसके थोड़ा ही आगे है कृष्ण बटर बॉल नाम से विख्यात चट्टान, और इसके आगे हैं तीन और बड़ी चट्टानें।
(5 ).गणेश रथ से उत्तर की ओर चलें तो आपको मिलेंगे अधूरे छूट गए हाथी , मोर और बन्दर के शिल्प।
(6 ).इसी परिसर में स्थित हैं रॉक कट गुफा मंदिर और अन्य शिल्प जिनके नाम नोट कर ले, वर्ना कुछ छूट जायेंगे- बंदर शिल्प, त्रिमूर्ति केव, गोपी चर्न , कोटिकल मंडप, वराह मंडप, राया गोपुरम, रामानुज मंडप, महिषमर्दिनी केव, ओलक्कानिश्वरा मंदिर, आदि वराह मंडप, धर्मराज मंडप, छोटा अर्जुन पैनल। इनमे सबसे सुन्दर शिल्प है त्रिमूर्ति केव, वराह मंडप और महिषमर्दिनी केव में.
इसी के आगे चलते चलें तो आप पहुंचेंगे त्रिमूर्ति केव, जो एक त्रिकोष्ठीय मंदिर है जिसमे अधिष्ठित है ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ब्रह्मा यहाँ एकमुखी हैं.
गणेश रथ के पास है वराह मंडप- इसमें चार शिल्प है जो बहुत ही दर्शनीय है;
- भूदेवी की बचाते हुए वराह
- गजलक्ष्मी
- दुर्गा
- बाली को काबू करते त्रिविक्रम
इसके आगे है विजयनगर काल में अधूरा बना राया गोपुरम।
इसे देख कर आगे बढे तो लाइट हाउस की ओर जाने पर आप पहुंचेंगे महिषमर्दिनी केव और उसके ऊपर बने olakkanatha मंदिर पर.
महिषमर्दिनी केव मंदिर का मुख्य आकर्षण है आदम कद में बना महिषमर्दिनी पैनल और शेषशायी विष्णु पैनल। सुबह की हलकी धूप जब इन पैनलों पर पड़ती है तो इनकी आभा पूर्णतः निखर आती है.
दूसरा ग्रुप है स्वतन्त्र रूप से एक ही शिला को काट कर बनाये गए पूर्ण मंदिर।
महाबलीपुरम के रथ मंदिर
भारत में लगभग 1500 ज्ञात रॉक-कट गुफाये और विहार है, जिनमे अजंता, एल्लोरा आदि जग प्रसिद्ध है. लेकिन बात जब रॉक-कट पूर्ण मंदिरों की आती है तो एक हाथ की अँगुलियों पर इनकी संख्या गिनी जा सकती है. ये हैं
- महाबलीपुरम के रॉक-कट मंदिर, जिन्हे रथ के नाम से जानते हैं.
- एल्लोरा का कैलाश मंदिर, और
- मसरूर, हिमाचल के रॉक-कट मंदिर।
मसरूर के मंदिर के निर्माण काल सुनिश्चित तौर पर ज्ञात नहीं है. छठी से आठवीं सदी के बीच में कभी बने होंगे, लेकिन अधिकांश इतिहासविद अनेक कारणों से इन्हे 8वीं सदी में निर्मित हुआ मानते है, जिनका विवेचन फिलहाल इस लेख को विषयांतर का दोषी बना देगा।
एल्लोरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राजा कृष्णा I के शासन काल में हुआ था यानि A.D. 756-783 में कभी.
ASI के अनुसार महाबलीपुरम के रथ-मंदिरों का निर्माण पल्लव राजा नरसिंहवर्मन I ने करवाया था जिसका शासनकाल था AD 630-668.इस तरह से महाबलीपुरम के रथ-मंदिर, वर्तमान में विद्यमान, भारत के सबसे प्राचीन रॉक-कट पूर्ण मंदिर हैं.
रथ के नाम से प्रसिद्द ये पांच मंदिरों का समूह एक ही परिसर में है। परिसर में प्रवेश करने के बाद सबसे पहला मंदिर है द्रौपदी रथ। वस्तुतः ये देवी का मंदिर है, मंदिर की बाह्य दीवारों पर दुर्गा के भिन्न रूप बने हैं और भीतर दुर्गा की खड़ी मुद्रा में मूर्ति है, इसी रथ के बाहर दुर्गा का वाहन शेर भी बना है.
द्रौपदी रथ से ही जुड़ा रथ है अर्जुन रथ. जहाँ द्रौपदी रथ सिर्फ एक कोष्ठीय है, वहीँ अर्जुन रथ में बाहर एक बरामदा और अंदर देव के लिये कोष्ठ है. मंदिर के बाह्य दीवारों पर बने पैनल्स में प्रमुख है- नंदी पर झुके शिव, ऐरावत पर इंद्र और गरुड़ के साथ विष्णु। इसी रथ मंदिर के पीछे ही बना है अधूरा बना नंदी जो अधूरा होने के बाद भी एक मास्टर पीस है शिल्पी की कला का.
इससे अगला रथ मंदिर है भीम रथ, जिसकी छत बंजारे की गाड़ी की तरह गोल सी है. पूरा मंदिर लम्बाई में अधिक है जिससे ज्ञात होता है इसे शायद शयन विष्णु (Reclining Vishnu ) के लिए बनाया गया होगा।
इसके बाद है धर्मराज रथ, जो इस ग्रुप का सबसे ऊँचा मंदिर है. इसका विमान पूर्ण है लेकिन आधार भाग या मुख्य मंदिर अधूरा है. इसे देख कर सहज ही अनुमान लग जाता है की चट्टान को काट कर स्वतन्त्र रूप से खड़ा मंदिर बनाना कितना कठिन कार्य है.
इसी परिसर में इन चारों से हटकर बने हैं नकुल-सहदेव रथ, और इसी के समीप बना है जीता जगता हाथी।
महाबलीपुरम का तटीय मंदिर (शोर टेम्पल, समुद्र के किनारे बना मंदिर)
अब बात करें शोर टेम्पल के नाम से ख्यात समुद्र किनारे बने शिव मंदिर की. शोर-टेम्पल का निर्माण राजा राजसिम्हा नरसिंहवर्मन II के शासन काल में हुआ था यानि 700-728 AD के मध्य कभी. यहाँ शाम या सवेरे जल्दी घूमे, क्यूंकि छाया के लिए एक पत्ती तक नहीं है यहाँ।
ये मंदिर चट्टान को काटकर नहीं बल्कि पथरों से बनाया गया है. समुद्र के खरे पानी से इसे बहुत नुकसान हुआ और बचाने के लिए इसके समुद्र की ओर एक ऊँची बॉउंड्री वाल बनायीं गई. इस पर एक विस्तृत पोस्ट बाद में.
महाबलीपुरम के अन्य आकर्षण :
वैसे महाबलीपुरम बड़ा ही बेतरतीब, भीड़-भाड़ वाला और दिसंबर जनवरी में भी कड़क धूप से सिकता क़स्बा है, लेकिन इसका जो रॉक-कट केव्स का परिसर है, जो अर्जुन पैनल के ठीक पीछे से है , उसके रस्ते बड़े ही सुन्दर और हरे भरे है. बच्चों को सबसे अधिक यहीं मज़ा आया और मुझे भी ये परिसर इतना भाया कि अगले दिन बहुत ही सुबह उठ कर हमने ये परिसर पुनः घूमा। कुछ फोटो –
Gnarled trees, buttressed roots and giant boulders
महाबलीपुरम का समुद्र तट बहुत सवेरे या फिर सूरज ढलने के बाद ही जाएँ। पेड़ों की छाया नहीं है, दिन में दस मिनट भी सहने मुश्किल होते है इस पर. बहुत अच्छा नहीं है, सिर्फ बच्चों के लिए और लोगों का रेलमपेला देखने के लिए है.
महाबलीपुरम कैसे जाएँ ?
यात्रा बिंदु: चेन्नई से यहाँ पहुँचने के लिए बहुत अच्छी बस सेवा उपलब्ध है. चेन्नई में CMBT, कोयम्बेडु से आप यहाँ के लिए बस ले सकते हैं.
ठहरने के लिए सभी बजट के होटल उपलब्ध हैं.
चेन्नई की ही तरह यहाँ भी मौसम बड़ा उमस और गर्मी वाला होता है. अतः सर्दी में घूमना ठीक है. दिसंबर-जनवरी में यहाँ dance festival भी होता है, जो तमिलनाडु टूरिस्म आयोजित करता है.
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