- The Best Desert Safari in Rajasthan
- राजस्थानी संस्कृति में कुरजां पक्षी
- खीचन की गलियां
- Khichan: Offbeat Rajasthan in a small Village
“जहाँ न जाए गाड़ी , वहां जाए मारवाड़ी “, राजस्थानियों के लिए ये कहावत देश भर में मशहूर है. एक तरफ तो ये राजस्थान के लोगों का वणिक चातुर्य और आजीविका के लिए देस बिदेस में जाने की जीवटता दर्शाती है, किन्तु दूसरी ओर जो ये छुपाती है वो है इन परदेसियों की देस में छूटी ब्याहताओं की, जिन्हे साल दर साल प्रतीक्षा करनी पड़ती थी इनके कुछेक महीनो के लिए आने की.
पति की अनुपस्थिति में तो ससुराल आज भी दुरूह ही लगती है, तो जब सास ससुर के हुकुम के नीचे रहना पड़ता था, लम्बा घूँघट काढ़े दिवस भर काम और काम करना होता था, चिठ्ठी पत्री का कोई उपाय न था, जेठ के तपे महीने, सावन की भीगी पुरवाई, पोस की ठिठुरती रात और सजीले किन्तु सूने तीज त्यौहार में लहराती गीतों की कूक और उसे सुन उठती हिये की हूक ; तब प्रिय की दीर्घकालीन अनुपस्थिति कितनी कठिन होती होगी!
बहुत पहले नहीं, आज से बीस साल पहले तक भी मैंने कई धनाढ्य सेठों के परिवार देखें है, जहाँ पति परदेस में और पत्नी राजस्थान में ही ससुराल में ही रह रही थी. शायद अभी भी होता हो कहीं। इसी व्यापारिक बाध्यता के चलते अकेली छूटी विरहिणी ने अपने मन के उद्गार ह्रदय खोल कर लोकगीतों में व्यक्त किये है.
लोकगीत सदा से ही देश काल की सच्ची परिस्थिति बयान करते रहे हैं. कुरजां ऐसा ही एक लोकगीत है, जिसमे नायिका/विरहिणी कुरजां पक्षी ( Demoiselle Crane) के हाथ अपने प्रिय को संदेसा भेजती है कि विवाह कर, वे उसे क्यों अकेली छोड़ गए हैं. कुरजां जाके नायक को सन्देश देती है और उसे भी वियोग में उदास पाती है. संदेसा पाकर नायक नौकरी/ साथी छोड़ कर एक सजीले घोड़े पर रातों रात चल देता है , पूरी रात बेतहाशा चलके भोर होते होते अपने घर अपनी प्रिया के पास पहुँच जाता है.
क्रेन परिवार को सबसे छोटी और सबसे हलकी सदस्य है कुरजां। भारत में पांच प्रकार की क्रेन पक्षी मिलते हैं जिसमे से सिर्फ सारस ही यहाँ का आवासीय पक्षी है, बाकी चार- साइबेरियन क्रेन, कॉमन क्रेन , ब्लैक नेक्ड क्रेन और डेमोइसेल क्रेन यानि कुरजां भारत में शीतकालीन प्रवास के लिए आती हैं. सारस इनमे सबसे बड़ी है।
कुरजां की सुन्दर छरहरी काया को देखकर फ़्रांस की रानी अंटोनिआ ने इसे demoiselle नाम दिया था. लेकिन बड़ी ही जीवट वाली है कुरजां।
कुरजां एक प्रवासी पक्षी है जो सुदूर मंगोलिया और उत्तरी चीन की दुरूह ठण्ड से बचने के लिए, समूह बनाकर लम्बी उड़ान भरकर, बर्फीला हिमालय पार कर, भारतीय उपमहाद्वीप में शीतकालीन आवास के लिए आते हैं. राजस्थान के मारवाड़ अंचल जो जोधपुर, बीकानेर, आदि के अनेक गावों, तालाबों के समीप और गुजरात के कच्छ क्षेत्र में ये समूहों में अपना शीतकालीन आवास बनाती है.
नायिका के कुरजां पक्षी को संदेसवाहक के रूप में चुनने का बड़ा ही प्राकृतिक अर्थ है. निश्चित ही विरहिणी स्त्री को ज्ञात रहा कि ये बिदेस से यहाँ आती है और पुनः अपने दूर बसे देस को लौट जाती है. इतनी दूर जहाँ पति रह रहा होगा, वहां और भला कौन संदेसा ले जाए?
ताल छापर, लूणकरसर आदि स्थानों के आलावा राजस्थान का खींचन गांव कुरजां को मायके की तरह प्रेम से रखने के लिए प्रख्यात है. खिंचन में इनके लिए बने चुग्गाघर में सैंकड़ों की तादाद में ये आती है, जिनके संरक्षण के वहां के लोगों ने बिजली के तारों को जमीन में करवाया।
खींचन में इन्हे देखना एक अनूठा अनुभव है, जब ये एकसाथ सांझ सवेरे राजस्थान के एकांकित अकलंकित नीले आसमान में उड़ान भरती है , तो लगता है शायद सदियों से व्याकुल सभी ब्याहताओं की पीड़ा और आस दोनों ही चोंच में बंद है, और अवश्य ही शीत की गठरी में बंद ठर खुलते ही ये सभी संदेस इनके पंखों पे सवार हो कर प्रिय तक अवश्य ही पहुंचेंगे।
राजस्थान का प्रसिद्द विरह लोकगीत कुरजां के बोल कुछ इस प्रकार हैं-
सूती थी रंग महल में, सूती ने आयो रे जंजाळ,
सुपना (सपना) रे बैरी झूठो क्यों आयो रे।
कुरजां तू म्हारी बैनडी (बहन )ए, सांभळ( समझ) म्हारी बात,
ढोला ने ओळमां (शिकायत) भेजूं थारे लार,
कुरजां ए म्हारो भंवर (पति/प्रिय) मिला दीजे ए।
सुपनो जगाई आधी रात में , तनै मैं बताऊँ मन की बात
कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ , संदेशो म्हारे पिया ने पुगाद्यो ऐ।
तूं छै कुरजां म्हारे गाँव की, लागे धर्म की भाण (बहन)
कुरजां ऐ राण्या भंवर मिलाद्यो ऐ, संदेशो म्हारे पिया ने पुगाद्यो ऐ।
पांखां पै लिखूं थारै ओळमों (पंखों पे शिकायत लिखूं), चांचा पै सात सलाम (चोंच पर सात सलाम)
संदेशो म्हारै पिया ने पुगाद्यो ऐ , कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ।
लश्करिये ने यूँ कही, क्यूँ परणी छी मोय (मुझसे ब्याह ही क्यों किया ?)
परण पाछे क्यों बिसराई रे, ( ब्याह किया तो अब भूल क्यों गए?)
कुरजां ऐ भंवर मिलाद्यो ऐ, कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ।
ले परवानो (संदेस)कुरजां उड़ गई, गई-गई समदर रे पार
संदेशो पिया की गोदी में नाख्यो(डाला) जाय
संदेशो गोरी को पियाजी ने दीन्यो जाय।
थारी धण री भेजी मैं आ गई, ल्याई जी संदेशो ल्यो थे बांच (तुम्हारी ब्याहता का भेजा संदेस पढ़ लो)
थे गोरी धण ने क्यों छिटकाई जी (तुमने गौरी को क्यों छोड़ दिया?), कुरजां ऐ साँची बात बताई जी।
के चित आयो थारे देसड़ो, के चित आयो माय’र बाप
साथीड़ा म्हाने सांच बतादे रे, उदासी कियां मुखड़े पे छाई रे।
आ ल्यो राजाजी थारी चाकरी, ओ ल्यो साथीड़ा थांरो साथ,
संदेशो म्हारी मरवण ( ढोला मारु की प्रेम कहानी की नायिका मरवण ) को आयोजी
गोरी म्हाने घरां तो बुलाया जी।
नीली घोड़ी नौ लखी, मोत्यां से जड़ी रे लगाम
घोड़ी ऐ म्हाने देस पुगाद्यो जी, गोरी से म्हाने बेगा मिलाद्यो जी।
कुरजां ऐ राण्यो संदेशो म्हारे पिया ने पुगाद्यो ऐ।
रात ढल्याँ राजाजी रळकिया (रात ढले ही प्रिय घोड़ी पर सवार हो दौड़ चले)
दिनड़ो उगायो गोरी रे देस (भोर होते होते प्रिया के पास पहुँच गए)
कुरजां ऐ सांचो कोल (सच्चा वादा) निभायो ऐ, कुरजां ऐ राण्यो भंवर मिलाया ऐ।
सुपनो जगाई आधी रात में ,तने मैं बतायी मन की बात
कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाया ऐ, सुपनो रे बीरा फेरूँ -फेरूँ आजे रे। (ऐसा सपना मुझे बार बार आये, जो पिया को ले आया)
आप भी सुनिए ये विरह गीत अनुप्रिया लखावत की आवाज़ में
https://www.youtube.com/watch?v=hiW03-c-Joo
Interesting news in TOI:
A demoiselle crane tagged in Mongolia’s Khurkh Valley has reached Khichan in Jodhpur after covering a distance of 4,032km in 151 days. Experts said it is so far the longest recorded flight of a demoiselle crane.
The band or tag tied to the bird’s leg has revealed that it crossed China, Arunachal Pradesh, Assam, Meghalaya, Bihar and UP before reaching Rajasthan. To reach the state, the bird (smallest of the 15 species of cranes) flew at altitude of upto 26,000 feets.
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https://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/crane-covers-4000km-from-mongolia-to-reach-rajasthan/articleshow/79972349.cms