सुबह सुबह माँ को देखा है कबूतरों को बाजरा डालते। फिर गोरैया के लिए मिटटी की प्याली में पानी भरते ताकि उन्हें प्यास मिटाने को भटकना न पड़े. सुग्गा पंखियों को देखा है अमरुद के पेड़ पर धावा बोलते हुए. कौए को मुंडेर से उड़ाया है कई बार अपने मनचाहे मेहमान को घर बुलाने के लिए. मोर को नाचते देखा है अनगिनत बार अपने नानी के घर. साँझ होने पर सुना है मैनाओं, गोरैयों का कलरव। जब रात होने पर उल्लू बोलता तो देखा है भय कई चेहरों पर.
कितने ही तो लोक गीत बने है इन पक्षियों पर, और कितने ही गद्य-पद्य भी लिखे गए. लोक मानस से इनका गहरा रिश्ता है. दिनचर्या का भी एक हिस्सा हैं ये पक्षी। सुबह इनके चहचहाने की आवाज़, मंत्र और भजन के साथ साथ मोहल्ले में तैर जाती है. फिर इनको दाना पानी डालने से पुण्य बटोर कर दिन आगे बढ़ता है. इनको, खेतों में और घर की छत पर सूखते अनाज पर टूट पड़ने से बचाने में सांझ उतरती है.
जब यायावरी का शौक चढ़ा तो अनेक स्थानों पर भिन्न भिन्न पक्षी दिखते रहे, लेकिन उन्हें पहचानने का सूत्र पकड़ नहीं आया. सोचा कि किसी पक्षी-अभ्यारण्य की सैर को जायेंगे तो समझ आएगा। समय बीतता रहा और इन पक्षियों के बारे में कौतूहल वैसा ही बना रहा, किन्तु बात आगे न बढ़ पाई. लेकिन 2007 में सिक्किम यात्रा के दौरान दो प्रसिद्ध बर्ड वाचर्स से मुलाकात हुई और उनसे ‘बर्ड वाचिंग’ की बारखड़ी सीख कर इस ‘बर्ड वाचिंग’ का सफर शुरू किया, जो आज भी जारी है.
इस लेख में मैं ‘बर्ड वाचिंग कैसे करें’ पर थोड़ा सा बताउंगी।
नोट – ये लेख सिर्फ आरम्भिक ‘बर्ड वाचर्स ‘ के लिए है और इसका क्षेत्र पक्षियों को देखने और उनकी पहचान करने तक सीमित है.
‘Crested Serpent Eagle’ at Jim Corbett National Park
कहाँ शुरू करें?
यह सबसे पहला प्रश्न है जो कि पक्षी देखने की शुरुआत करने पर आता है और इसी प्रश्न को हमने बहुत साल तक गलत किया. पक्षियों को देखने के लिए किसी सेंचुरी यह स्पेशल जगह जाने की जरूरत नहीं है. जब आप शुरू करते हैं तो सबसे अच्छी जगह अपने आस-पास का पार्क या पेड़ पौधे हैं. दिल्ली में अपने आसपास के पार्कों में आप कम से कम 30 प्रजातियों के पक्षी देख सकते हैं. सच तो यह है कि अगर आप सेंचुरी में पक्षी देखना शुरु करते हैं और आप उतने ही अनभिज्ञ हैं जितनी कि मैं थी जो कि तोता, मैना, कौवा, गोरैया, मोर, कबूतर के अलावा पक्षियों के बारे में कुछ जानती नहीं थी तो बहुत हद तक संभव है आपको बर्ड वाचिंग एक मुश्किल कार्य लगे और आप इसका आनंद ना उठा पाए, क्योंकि सेंचुरी में इतने पक्षी दिखाई देते हैं कि आपके लिए उन्हें पहचानना और याद रख पाना मुश्किल होता है.
शुरू करें गोरैया से.
हमारे घरों के आसपास गौरैया हमें बहुधा चहचहाती और फुदकती दिखती रहती है. इसे गौर से देखें। आप पाएंगे कि इन गौरैयों के झुंड में दो तरह की गौरैया है – एक जिसका सर सलेटी-भूरा और गला काला है वह नर गैरैया है. दूसरी इससे कम आकर्षक, मटयाली भूरी मादा गोरैया है.
अब एक नजर कबूतर और उसके जुड़वे भाई पर भी डालें। दिल्ली में जो तार पर और खिड़कियों पर बैठे कबूतर हैं वह रॉक पिजन है और जो बड़े पेड़ों में छुप कर बैठे हैं वह येलो फुटेज ग्रीन पिजन है. इस तरह जब आप अपने आसपास के इन 20-30 पक्षियों को ठीक से देखना और पहचानना शुरू करेंगे तो आप बर्ड वाचिंग के बारे में काफी कुछ सीख लेंगे। फिर आप जहां भी यात्रा के लिए निकले- हिमालय से लेकर समुद्र तक, रेगिस्तान से लेकर जंगल तक,- शहर और गांव सभी जगह सुबह सुबह सूरज देव के उठते उठते ही आप भी उठ पड़ें और अपने आस-पास बाहर निकलकर वहां के स्थानीय पक्षियों को देखें।
हर स्थान पर सरल ,मुश्किल, ठीक-ठाक कठिनाई वाली छोटी से लेकर बड़ी नेचर वॉक की जगह जरूर होती है. बहुत सारे स्थानों पर स्थानीय पक्षियों और वहां पर भिन्न-भिन्न मौसम में मिलने वाले पक्षियों की लिस्ट भी होती है. जैसे कि अनिल फार्महाउस गुजरात में रिसेप्शन पर एक बोर्ड लगा था जिसमें फार्म हाउस और उसके आसपास मिलने वाले सभी पक्षियों के चित्र और नाम लिखे थे. उस बोर्ड को देख कर हमने सुबह शाम उन पक्षियों की खोज में चहल कदमी की और नदी किनारे पहुंच गए जहां पहली बार हमने pied किंगफिशर देखी और उसे बहुत देर तक hover करते हुए देखा। हालांकि यह हमारी बर्ड वाचिंग ट्रिप नहीं थी फिर भी 10-12 नए पक्षियों को देखना एक अभूतपूर्व अनुभूति थी.
इसी तरह इसी तरह चौकोरी उत्तराखंड में यूं ही टहलते टहलते हमने Eurasian jay देखी। सात ताल में नाव की सैर का मजा लेते हुए पहली बार एशियन पैराडाइज फ्लाईकैचर के दर्शन हुए. जैसे जैसे आप पक्षियों को देखने की आदत बनाते जाएंगे, वैसे वैसे ही आपकी आंखें और कान उन पक्षियों को देखने पहचानने में दक्ष होती चली जाएंगी और आप फिर आप जहां भी हैं- चाहे अपने पार्क में बैठे हैं या ट्रैकिंग कर के टेंट लगाकर बैठे हैं या समुद्र किनारे समुद्र का मजा लेकर सुस्ता रहे हैं, आप किसी न किसी चिड़िया को ढूंढ लेंगे जो कि आपने पहले नहीं देखी होगी। इसके बाद आप किसी बर्ड सेंचुरी जैसे कि भरतपुर, चंबल, कॉर्बेट कहीं भी जाएं, आप आसानी से बर्ड वाचिंग कर पाएंगे।
‘Egyptian Vulture’ at Kathar, Rajasthan
एक बार पुनः लौटते हैं अपने नजदीक के पार्क पर. प्रश्न उठता है कि जब पेड़ पर आम कबूतर से अलग दिखने वाला कबूतर बैठा है, उसको कैसे पहचाने? आप कैसे जानेंगे कि यह yellow footed green pigeon है?
पक्षियों को पक्षियों को पहचानने का दायरा बढ़ाने का सबसे आसान तरीका है किसी अनुभवी बर्ड वाचर के साथ birdwalk की जाए, लेकिन ऐसा हर जगह संभव नहीं हो पाता। और अगर आप बर्डिंग गाइड ले भी लें तब भी जब तक आप स्वयं नहीं सीखेंगे किसी पक्षी को कैसे पहचाने तो अगली बार जब आपके साथ में बर्डिंग गाइड नहीं होगा तो आप पहले देखे हुए पक्षियों को भी नहीं पहचान पाएंगे।
प्रश्न उठता है और इन पक्षियों को कैसे पहचाने? इससे पहले लेकिन हम ये जान लें कि बर्ड वाचिंग के लिए हमें क्या चाहिए?
बर्ड वाचिंग के लिए हमें क्या चाहिए?
सिर्फ दो चीजें :
1.बाइनोकुलर Binoculars – पक्षियों को देखने के लिए
2.फील्ड गाइड Field Guide- पक्षियों को पहचानने के लिए
सच तो ये है कि अपने आस पास के पार्क में चिड़ियों को देखने के लिए तो बाइनोकुलर की भी जरुरत नहीं है. लेकिन जल्द ही आपको जरुरत पड़ेगी। तो कुछ बातें बाइनोकुलर के बारे में.
BINOCULARS
बाइनोकुलर 7*50, 8*40 or 10*50 आदि की आवर्धक रेंज में आते हैं. इसमें पहला नंबर 7, 8, 10 आवर्धन अर्थात magnification को दर्शाता है, जिसको सरल शब्दों में कहे तो ये सामान्य आँखों से दिखने वाली वास्तु को ७, ८, या १० गुना बड़ा करता है. दूसरा नंबर 40, 50 आदि ये बताता है कि बाइनोकुलर कितनी रौशनी ले पाता है. जितना बड़ा नंबर, उतनी अधिक रौशनी अर्थात जो वस्तु आप देख रहे है वह कितनी साफ दिखाई देगी। तो बड़ा नंबर जैसे कि 10*50 होने पर वस्तु अधिक बड़ी और अधिक साफ़ दिखेगी। लेकिन इसके कुछ नुकसान है- अधिक आवर्धन क्षमता का अर्थ है की आप के हाथ का थोड़ा सा भी कम्पन image में अधिक मालूम होगा। लेकिन सामान्यतः 8*40 एक अच्छा ऑप्शन है.
एक और बात जो बाइनोकुलर खरीदते समय ध्यान रखे – आप बाइनो को गले में लटका कर घूम रहे होंगे तो उसका हल्का होना और उसका बेल्ट चौड़ा और आरामदायक होना आवश्यक है, अन्यथा आपकी गर्दन में दर्द या असुविधाजनक होने का डर है.
बायनोकुलर खरीदने के लिए सुझाव और गाइड यहाँ पढ़ें।
एक अदद फिल्ड गाइड का आपके पास होना हरदम आवश्यक है ताकि आप दिखने वाली चिड़ियों की पहचान कर सकें। फिल्ड गाइड में पक्षियों के चित्र, उनके नाम और उनकी पहचान के जरुरी लक्षणों, आवास की जगहों और आदतों, तथा उनके भौगोलिक क्षेत्र की संक्षिप्त किन्तु स्पष्ट जानकारी होती है. इसके आलावा विस्तृत पुस्तकें भी होती है किन्तु उनको यात्रा में या हर समय घूमने फिरने में साथ रखना मुश्किल है. भारत के पक्षियों पर जो फील्ड गाइड्स उपलब्ध है उनमे सर्वाधिक सरल और स्पष्ट है-
1.A Field Guide to the Birds of India by Krys Kazmierczak
2.Pocket guide to the Birds of Indian Subcontinent by Grimmet, Inskipp, Inskipp.
डॉक्टर सलीम अली की पक्षियों पर बहुत अच्छी पुस्तकें हैं और उनका हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है, किन्तु वे फिल्ड गाइड की तरह काम में नहीं ली जा पाती हैं.
एक गाइड बुक में सभी जाति के मिलने वाले सभी पक्षियों की अलग अलग जाती अनुसार प्लेट्स होती है. उसके साथ ही विपरीत पेज पर, उस प्लेट में दिखये गए भिन्न भिन्न पक्षियों के बारे में, जैसे कि उनका नाम, उनकी पहचान के प्रमुख लक्षण, आवासीय आदतें, उनकी आवाज़, और माइग्रेशन पैटर्न आदि की जानकारी होती है.
‘Cattle Egret’ in breeding plumage at city park- Delhi
तो अब आपके पास एक बाइनो और एक फिल्ड गाइड है. अब जो चिड़िया आपने देखी है, उसे कैसे पहचाने? अब हमें फील्ड गाइड को टटोलने की जरुरत है. लेकिन फील्ड गाइड में कहाँ और कैसे ढूंढे ?
इन दोनों प्रश्नों के उत्तर आपको देती हूँ किसी सामान्य पक्षी का उदहारण लेके, लेकिन उससे पहले थोड़ा सा अपने आपको परिचित कर ले पक्षियों के शरीर विन्यास से।
BASIC TOPOGRAPHY OF BIRD
बर्ड टोपोग्राफी जानने के लिए लगाया गया समय आपको पक्षियों के सटीक अवलोकन और फिर उसका विवरण देने और ढूंढने में सहायता करेगा जो कि उन्हें पहचानने के लिए अति आवश्यक है.
चोंच से शुरू करते हुए घडी की दिशा में आगे बढ़ें और पक्षियों के शरीर की अपने शरीर से तुलना करते हर उनके नाम याद रखने की कोशिश करे- उपरी और निचली चोंच, ठुड्डी, गला, वक्ष, पेट, पाँव और फिर वेंट और पूंछ।
अब पुनः सर से आरम्भ करे और घडी से विपरीत दिशा में बढ़ें- forehead, crown, nape, back and rump.
इसके साथ-साथ आँख और सिर के हिस्से को अपने मुख के साथ तुलना करते हुए याद करें तो आसानी होगी। धीरे धीरे सतत अवलोकन करते करते आप बर्ड टोपोग्राफी से भली भांति परिचित हो जायेंगे।
OBSERVING/ FINDING THE BIRD पक्षियों का अवलोकन और पहचान।
birding का सबसे मधुरतम आयाम है पक्षियों का अवलोकन/देखना। इसी निहारने में शांत होती है हमारी मूलभूत शिकार की आदतें। आप चिड़िया की आवाज सुनते हैं और एकदम चौकस हो जाते हैं, दबे पाँव उस आवाज की ओर बढ़ते हैं, आँखों की पुतलियों को फैला कर सामने के आयाम को भेदने की कोशिश करते हैं. अकस्मात् कुछ पंखों की उड़ान की झलक मिलती मिलती है और खो जाती है हरे गहन विस्तार में. अब लुका-छिपी का खेल चलता है- झूलती शाखाओं के नीचे आप झुके जाते हैं, गीली मिटटी में घुटने धंसा कर बैठे हुए, निगाह अपने शिकार पर गड़ाए रखते हैं.
गर्दन को सीमा से अधिक तानकर अपने शिकार को दूर पेड़ की ऊँची शाखा पर बैठा पाते हैं. कभी कुछ भी न कर, दम थामे अपने शिकार का उसकी छुपी कोटर से बाहर आने की प्रतीक्षा करते हैं. अंततः शिकार आपकी ‘शूट लाइन’ में आता है, जिसे आप अपने आँखों के, बिनोकुलर के या कैमरे के लेंस में उतार लेने के लिए आप अपने शिकार को ‘शूट’ करते हैं, और शिकार फिर भी अनछुआ बच निकलता है.
अधिकांशतः यह शिकार का खेल शुरू होता है खुद शिकार की आवाज़ से. उस आवाज़ की दिशा में देखकर प्रतीक्षा करे उसके movement की. कभी सिर्फ मूवमेंट दीखता है लेकिन कोई आवाज़ नहीं। कभी पक्षी स्वयं ही एकदम से खुले में सामने आ जाता है. एक्सपर्ट birders तो पक्षी का गान सुनकर ही उसे पहचान लेते हैं. लेकिन उसके लिए सतत अर्थात हफ्ते-दर-हफ्ते, साल-दर-साल, बर्डिंग करनी पड़ती है.
एक ही जगह पर घास, झाड़ी, छितरे पेड़, घने पेड़, tree canopy, पर अलग अलग पक्षी मिलते हैं, क्योंकि हर पक्षी की अपनी आवासीय आदते होती हैं.
IDENTIFYING BIRDS
अगर पक्षियों को देखना मधुरतम है तो उन पक्षियों की पहचान कर पाना भी कम मधुकर नहीं। उन्हें देखने, ढूंढने में अगर हमारी मौलिक शिकार की प्रवृत्ति संतुष्ट होती है तो उनको पहचानने में हमारी सर्वाधिक उन्नत प्रवृत्ति अर्थात मस्तिष्क की दौड़ संतुष्ट होती है. जो हमने एक छोटी सी या लम्बी सी झलक देखी थी, उसे पुनः याद करते हुए, फील्ड गाइड में उससे मिलती जुलती पक्षियों के चित्रों को देखना और फिर ये तय करना की हमने विनिर्दिष्ट रूप से कौन सी चिड़िया देखि?
फील्ड गाइड में पक्षी को कैसे ढूंढे? इसे एक उदाहरण लेके समझते हैं.
किसी भी पक्षी में जो हम सबसे पहले देख कर याद करते है वो है उसका रंग.
पहली नज़र में ऊपर दिखाई गयी दोनों चिड़िया हरी दिखती हैं.पुनः देखें। चोंच, पूंछ, पंख को ध्यान से देखें। पक्षी के किसी भी भाग पर किसी विशेष कलर, पैटर्न, धारी आदि को ध्यान से नोट करें।
जैसे कि B1 के सर पर coppery tinge है, उसका गला नीलाभ रंग लिए है, और उसकी आँख पर black eye-stripe है.
B2 के माथे पर लाल रंग का patch है, उसके गले पर कुछ लाल-काली धारियां है, इसकी आँखके ऊपर और नीचे एक सफ़ेद रंग का patch है.
अब अगर हम सिर्फ रंग के आधार पर इसे गाइड बुक में ढूंढने की कोशिश करेंगे तो ये एक कठिन कार्य है, क्योंकि गाइड बुक के photo-index पेज पर हरे रंग की कई चिड़ियाँ हैं.
यही नहीं, बदलती रौशनी में कई चिड़ियों का रंग ठीक से समझ नहीं आता. मुश्किल और बढ़ जाती है जब एक ही चिड़िया अपने प्रजनन और अ-प्रजनन (breeding and non breeding season) काल में अलग अलग रंगों में दिखती है. (Cattle Egret के फोटो देखिये।)
Shape and Size of the Bird:
पक्षियों को देखते समय उनके आकार- प्रकार ( Shape and Size) को ध्यान से देखें। B1 गोरैया की साइज की है जबकि B2 गोरैया से बड़ी किन्तु तोते से छोटी है.
ये भी देखें की ये मोटी plump (B2), पतली skinny (B1) है, छोटी या लम्बी है, इत्यादि।
जैसे कि B1 में हम देखते है कि :
ये छोटी और पतली है, इसकी चोंच तीखी है, इसकी पंच लम्बी है जिसके आखिर में ऐन्टेना जैसा projection है.
लेकिन, B2 थोड़ी मोटी है, इसकी चोंच strong और stout है, और इसकी पूंछ छोटी है.
तो इन सब जानकारियों के साथ आइये अब फील्ड गाइड देखें। मैं Krys Kazmierczak की पुस्तक में देख रही हूँ.
इसका पहला photo-index पेज, जो ऊपर दिखाया है, सभी जातियों की representative bird को दिखता है. अगर हम सिरफ रंग से देखें तो हमें प्लेट 43, 44, 51, 56, सभी हरे रंग की चिड़ियों को दर्शाती है. लेकिन जब हम shape देखें तो हम पाते है कि B1 और B2 , प्लेट 43 और 44 से तो कतई नहीं मिलती। यानि अब हमारे पास सिर्फ दो विकल्प बच रहे- 51 and 56. चोंच और पूंछ को देखते हुए B1 तो प्लेट 51 पर पूर्णतः फिट होती है, लेकिन B2, 51 या 56 हो सकती है.
तो अब हम प्लेट 51 और 56 का पन्ना खोलते हैं.
प्लेट 56 पर दी गई चिड़ियाओं में से कोई भी B2 से मेल नहीं खाती. अब हमारे पास सिर्फ एक ही विकल्प रहा है- प्लेट 51 .
प्लेट 51 का पृष्ठ खोलें। B1 चिड़िया, 1-6 नंबर की प्रदर्शित चियों जैसी है अतः ये तो सुनिश्चित हो गया कि ये Bee eater चिड़िया है.
B2 चिड़िया , 12-16 नंबर के चित्र वाली चिड़ियों जैसी है अतः ये निश्चत तौर पर एक Barbet है.
अब हम चिड़ियों को फील्ड गाइड से पहचानने के आखिरी नुक्ते तक आ पहुंचे हैं- जब हम ये निश्चित करेंगे कि ये कौनसी Bee Eater और Barbet है. अगर आपने ठीक-ठाक फोटो खींची है तो ये काम अधिक आसान होगा, क्योंकि आप बार बार फोटो देख कर इसे भिन्न भिन्न चिड़ियों से मिला सकते हैं. लेकिन चिड़ियों का फोटो लेना कठिन काम है. लेकिन दोनों ही cases में हमें तो चिड़िया को identify करना है.
अगर आपके पास फोटो है_Using the Photographs-
फोटो देखने पर हम नोटिस करते हैं कि हमने जो Bee eater देखी , उसके सिर पर coppery tinge है. यानि ये 1, 4 and 5 में से कोई हो सकती है. लेकिन 1 नंबर की चिड़िया के पंखों पर vivid रंग है, जबकि हमारे फोटो में सिर्फ हरा रंग है. यानि ये 1 नंबर वाली तो नहीं है. अब बची 4 और 5 नंबर। फोटो ध्यान से देखने पर हमें अपनी देखि चिड़िया के गले पर हल्की नीलाभ आभा दिखती है जो कि सिर्फ 4a नंबर की चिड़िया पर है. तो ये है – Green Bee-eater (race Ferrugeiceps).
जब फोटो न हो ?
लेकिन अगर हमारे पास ठीक फोटो नहीं है और हम बहुत detail याद भी न रख पाए हो तो क्या करे? (वैसे चिड़िया देखने के बाद कॉपी या मोबाइल में ही उसकी डिटेल नोट कर लेना चाहिए।)
या अगर फोटो है भी, जैसे कि barbet का, तब भी ये 12, 14 या 15a है, ये तय करना अभी भी मुश्किल है.
ऐसे में आपने उस चिड़िया को कहाँ देखा था ये याद करे.
कहाँ देखा ?
Where were you?
अपने नज़दीक के पार्क में, पानी के पास, हिमालय में, north east में, या तटीय इलाकों में? आपने जो चिड़िया देखि उसकी habitat क्या है, ये एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है उसे पहचानने के लिए.
Barbet के ही उदहारण को आगे बढ़ाते हुए, हम ये तो जान चुके थे की ये 12-16 नंबर की कोई चिड़िया है. अब इसे और सटीक पहचानने के लिए प्लेट के साथ लगे पृष्ठ पर इन सभी की habitat के बारे में लिखा है :
12 पहाड़ी जंगलों में मिलती है.
13 घने जंगलों में मिलती है.
14 and 15 खुले जंगल, बाग-बगीचों में मिलती है.
16 घने, broad leaved evergreen forest में मिलती है.
लेकिन चूँकि मैंने ये चिड़िया दिल्ली के पार्क में देखी थी, तो ये 14 या 15 में से कोई हो सकती है, दूसरी नहीं।
अब 14 या 15 ??
एक अंतिम उपाय है अभी बाकी !
14 और 15 दोनों के distributive map यानि भारत में ये कहाँ-कहाँ मिल सकती है, इस पर नज़र डालिये। इसमें 14 तो करीब करीब भारत के अधिकांश भागों में मिलती है लेकिन 15 सिर्फ Western Ghats और Sri Lanka के कुछ हिस्सों में मिलती है.
तो ये चिड़िया सिर्फ नंबर 14 यानि Coppersmith Barbet ही है.
( राजस्थान में हज़ारों की संख्या में आने वाली कुरजा पक्षी के बारे में यहाँ पढ़े)
BIRDING TIPS
1. सुबह सुबह और शाम birding के लिए अच्छा समय है जब चिड़िया सबसे अधिक active होती है.
2. अपने bino को अपनी आँखों के अनुरूप set करके रखें।
3. चिड़िया को पहले अपनी आँख से देखे, उसके बाद उसे bino से फोकस करके देखें।
4. अपने साथ नोटबुक रखें या मोबाइल में नोट्स ले.
5. भड़कीले, चटख रंग न पहने।
6. बड़े समूह न बनाये।
7. चुप्पी साधे रहें, और दबे पाँव चलें।
ENJOY!
बहुत बार हम recreational activity को भी एक काम बना लेते हैं. हम लम्बी लम्बी यात्राएं करते हैं, लेकिन सारा दिन भाग भाग कर sight-seeing points को सिर्फ देख भर लेते हैं, सचमुच उसे जीते नहीं। गपशप करते, ये विचारों के घोड़े पर सवार होकर अंगूर, एप्पल खा लेते हैं, लेकिन उसका रसास्वादन नहीं कर पाते। ऐसा ही कुछ birding में भी होता है.
याद रखें कि आप birding आनंद के लिए कर रहे है, अपनी लिस्ट में tick करने के लिए नहीं। अगर किसी चिड़िया की activity, जैसे कि उसका नाचना, preening, आदि आपको अच्छा लग रहा है तो उसे निहारे, न कि अन्य चिड़ियों की खोज में निकल पड़े ताकि लिस्ट बढाई जा सके.
तो डूबें इनके रंगों में!!
HAPPY BIRDING!
Really impressive and very usefull knowledge about bird watching. With details of equipments like binoculars and field guide books as well as tech. for use it.
धन्यवाद अनुराग।अगर कुछ लोग भी इस पोस्ट को पढ़ने से पक्षियों के संसार में जाएँ,तो लेख सफल हुआ.
बर्ड वाचिंग की शुरूआत करने वालों के लिए बहुत ही पोस्ट है । बर्ड वाचिंग एक बहुत शानदार शौक है, एक बार आदत पड़ने पर आप कभी सर झुकाकर नही चल सकते। हर जगह आपको प्रकृति की ये सुंदर भेंटे मिलेगी । आभार आपका ।
धन्यवाद मुकेश जी.
पक्षी दर्शन प्राचीन परम्परा है, पक्षियों के माध्यम से सकुन विचार साथ मौसम एवं भविष्य पर भी विचार किया जाता था। हमें प्राचीन स्थापत्य में पक्षियों की प्रचुर उपस्थिति मिलती है।
मानव के सदा सहचर पक्षी ईश्वर की अनुपम कृति हैं तभी देवताओं ने इन्हें अपने साथ संलग्न किया। पक्षी दर्शन व्यक्ति को एकाग्र करता है। उसकी मेधा शक्ति वृद्धि के साथ अवसाद से बाहर निकालता है।
पक्षी दर्शन पर सुंदर आलेख के लिए आपका साधुवाद। वर्तमान में यह परम्परा विलुप्त हो रही है इसे सतत रखना अत्यावश्यक है। सुचारु रखने के लिए प्रयास करना चाहिए तथा विशेषकर बच्चों को पक्षियों से अवश्य परिचित कराना चाहिए।
लेख पर आपकी टिपण्णी के लिए धन्यवाद।
दिल्ली,बैंगलोर में मैंने बच्चों को देखा है bird watching करते हुए. कई यात्राओं में भी बच्चों को उत्साह से bird watching करते देखा है.
जयश्री जी के जगह बर्ड वाचिंग की में भी गया पर मुझे यह सब बोर करता था शायद अज्ञानता या रुचि न होना एक प्रमुख कारण होगा….इसके बदले में लोग बर्ड वाचिंग के लिए घंटो बैठे रहते बड़े महंगे महंगे कैमरे से फोटो निकालते…पहले इस विषय मे अज्ञान था अब पूरा तो नही लेकिन 10 प्रतिशत तो समझ आया…बहुत ही मेहनत से आपने समझाया फिर भी 10 प्रतिशत ही समझ आया सोचो हमारे जैसे लोगो के लिए यह कितना complex है…आपकी इतनी गहन रिसर्च को सलाम
प्रतीक,कोई research नहीं,सिर्फ अपना अनुभव कि जैसे हमने इसे सीखा,वैसे ही दूसरे भी सीख पाएं।
बेहतरीन , मैं बहुत दिनों से ऐसा ही कुछ ढंुढ रहा था । मैने चार छह माह से ही बर्ड फोटोग्राफी शुरू किया है । इसके पहले मैं नदी ,तालाब, जंगल और पर्वतों के ही फोटो लिया करता था । लेकिन हाल ही में बर्ड फोटोग्राफी का भूत चढ़ा है । लेकिन दिक्कत बर्ड की पहचान में होती है । मेरे साथ जो हैं वो काफी जानकार प्रतीत होते हैं लेकिन टिप्स नहीं देते । अब इस टिप्स के बाद काम थोड़ा आसान होगा उम्मीद है । आपका धन्यवाद । मेरा नम्बर 7000322152 है आप अपना नम्बर देंगे तो आगे और जानकारी आपसे लेना लाभप्रद होगा ।
संजीवजी – पढ़कर अच्छा लगा की यह पोस्ट बर्डिंगमेंआपके लिए मददगार साबित हुई 🙂 आपसे क्षमा चाहते हैं की फोन नंबर हम नही share करना चाहते| पर आपको विश्वास दिलाते हैं की आपके प्रत्येक कॉमेंट का उत्तर जल्द देने का प्रयास करेंगे|