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मोर की खूबसूरती पर हम सभी फ़िदा हैं. मोर के राष्ट्रीय पक्षी होने पर हमें नाज़ है. उसके सुनहरी हरे नीले पंख, राजसी कलगी, सुराहीदार गर्दन, चमकता नीला वर्ण, और उस पर पंख फैला कर, घूम घूम कर, थिरक थिरक कर, रुक रुक कर नाचना।
फिर उसके कनेक्शन भी बड़े ही महत्वपूर्ण हैं हमारे मानस में- कृष्ण मुकुट में , कार्तिकेय का वाहन, शक्ति के एक रूप- कुमारी देवी का वाहन, इन्द्र देव का रक्षक। लिखने को तो और भी बहुत हैं किन्तु इतने में ही उसकी हमारी संस्कृति में क्या महत्ता है इसका निर्णय हो जाता है.
भारत की सर्वप्रिय और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण वर्षा ऋतु में तो हम सभी का मन-मयूर नाचने लगता है. तो जाहिर है कि वर्षा ऋतु से भी मोर का गहरा रिश्ता नाता है. ये अलग बात है कि नाचता वो मोरनी को लुभाने के लिए है, सयोंगवशात उसका प्रजनन कल वर्षा ऋतु में आरम्भ होता है.
कौन जाने, कालिदास की नायिकाओ की तरह वह भी उमड़ती घुमड़ती काली घटाओं, ठंडी रिमझिम फुहारों से अपने प्रिय को याद करता हो.
तो क्या इसी लिए मोर राष्ट्रीय पक्षी चुना गया?
मोर के राष्ट्रीय पक्षी बनने की कथा भी विचित्र है. १९६० में “इंटरनेशनल कौंसिल फॉर बर्ड प्रिजर्वेशन” का टोक्यो में समेलन हुआ जिसमे विश्व के सभी देशो से आग्रह किया गया की वे अपने देश का एक राष्ट्रीय पक्षी चुने।
राष्ट्रीय पक्षी चुनने की रूपरेखा ये थी की जो भी पक्षी देश में विलुप्त होने के कगार पर हो तथा जिसे संरक्षण की सबसे अधिक आवश्यकता हो, उसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया जाए ताकि उसे बचाया जा सके. image courtesy- Wikipedia
गोडावण जो की अभी राजस्थान का राज्य पक्षी है, पिछली सदी के मध्य तक ही बहुत कम संख्या में रह गया था. कारण अनेक थे. उसके मांस का मनुष्यों को स्वादिष्ट लगना, उसके रहने के स्वाभाविक स्थान जो की arid और semiarid grassland है, उनका कृषि, आबादी , वृक्ष रोपण आदि में बदलना.
अभी भी देश में grasslands , flatlands और wetlands को ‘wasteland ‘ समझा जाता है, जबकि इकोलॉजिकल चेन में यह अति आवश्यक कड़ी है. हद तो ये है की फारेस्ट अफसर भी इन्हे वृक्षारोपण कर वन में बदलना उचित समझते हैं.
उस कांफ्रेंस के बाद भारत के महान पक्षिविद सलीम अली ने गोडावण, जिसे Great Indian Bustard के नाम से जाना जाता है, को भारत का राष्ट्रीय पक्षी बनाने का प्रस्ताव रखा.
उस वक्त भी लगभग 1300 गोडावण ही बची थी जो की भारत की indigenous species थी. मोर उस वक्त भी बहुतायत में थे और उनकी जनसँख्या पर कोई खतरा भी नहीं था.
लेकिन शेक्सपेअर ने चाहे कहा हो कि “नाम में क्या रखा है”, गोडावण के लिए तो नाम ही उसके अंत का सबब बन गया. किसी सरकारी बाबू को लगा की bustard को bastard गलती से लिख या बोल दिए जाने की प्रबल सम्भावना है , जो कि एक गाली है।
फिर क्या था. सलीम अली, कौंसिल की रूपरेखाएँ, गोडावण का विलुप्ति के कगार पर होना, गोडावण का एक शानदार, सुन्दर पक्षी होना, कुछ भी उसके काम न आ पाया क्योंकि उसका नाम अच्छा नहीं था. और उसके साथ ही शुरू हुई उसकी विलुप्ति की यात्रा.
आज विश्व में 200 से भी काम गोडावण है जो की सिर्फ भारत में हैं. मादा गोडावण वर्ष में सिर्फ एक अंडा देती है और उसका भी बचना, फिर पक्षी की उम्र तक पहुंचना , जिसमे एक साल लगता है, बहुत मुश्किल है.
अगर उस वक्त मोर की बजाय गोडावण को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया होता तो आर्थिक फण्ड उसके संरक्षण में लगे होते और उसके शिकार पर भी कड़ी पाबंदी होती. आज गोडावण को बचाने के सभी प्रयास निरर्थक साबित हो रहें हैं. अगर ये सचमुच ही विलुप्त हो गई तो?
लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई.
मोर के प्रति कोई दुराव नहीं, उसकी सुंदरता पर कोई दो राय नहीं, उसके चुन लिए जाने पर भी आपत्ति नहीं , लेकिन गोडावण की बलि देने की आवश्यकता नहीं थी. उसके संरक्षण के लिए प्रयास किये जाने चाहिए थे। अब भी अगर गोडावण बच सके तो आने वाली पीढ़ी के लिए हम कुछ छोड़ पाएंगे।
Really ? Thats so hard to believe that we didn’t the great bustard because of the name.
But why Peacock ?
You can read in the bird related books. Peacock of course was the most loved choice, though not on the lines of bird council.
रोचक जानकारी बाँटी आपने। मेरा मानना है कि राष्ट्रीय पक्षी वो होना चाहिए जो हमारे दिल और संस्कृति में रचा बसा हो ना कि जो विलुप्तप्राय हो । उम्मीद है कि गोडावण के संरक्षण के प्रयास चलते रहेंगे।
आपकी बात सही है, किन्तु परदे के पीछे की कहानी सामने लाना ही इस पोस्ट का प्रयास था. जो पीछे छूट गया वो गया, लेकिन भविष्य के भले के लिए अतीत को जानना ठीक रहता है.
देरी से जवाब के लिए माफ़ी।
बढ़िया और रोचक जानकारी ….
धन्यवाद रीतेश जी.
देरी से जवाब के लिए माफ़ी चाहती हूँ.
गोडावण और मोर के बारे में यह जानकारी मालूम ही नहीं थी।
मेरा प्रयास सार्थक हुआ.
देरी से जवाब देने के लिए माफ़ी चाहती हूँ.