बृहदीस्वर मंदिर, गंगाईकोंडाचोलापुरम

The Great Living Chola Temples के नाम से जानी जाने वाली तमिलनाडु की यूनेस्को हेरिटेज साइट में तीन मंदिर  इकठ्ठे आते हैं- तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर, गंगाईकोंडचोलपुरम का गंगईकोंडचोलेश्वरा बृहदीश्वर मंदिर और दारासुरम का ऐरावतेस्वर मंदिर। 

Gangaikondacholeswara Brihdeeswara Temple, Tamilnadu

गंगाईकोण्डाचोलपुरम – नाम का अर्थ

गंगईकोंडचोलपुरम – नाम में ही इसका इतिहास है.  राजराजा चोला जिन्होंने तंजावुर का बृहदीस्वरा मंदिर बनवाया था, उन्ही के पुत्र राजेंद्र चोला प्रथम ने पूर्वी भारत में ओडिशा और बंगाल  तक अपना सम्राज्य स्थापित किया था. इसी विजय के उपलक्ष्य में उन्होंने यहाँ एक नई राजधानी का निर्माण किया जिसमे अनेकों मंदिर थे. वो राजधानी और अन्य मंदिर मिट गए लेकिन यह भव्य बृहदीस्वरा मंदिर बचा रहा. राजधानी और इस मंदिर के निर्माण के समय उन्होंने पराजित राज्यों से गंगा जल भेजने को कहा. राजा की गंगा तक विजय के उपलक्ष्य में ये नाम पड़ा; गंगाई- गंगा, कोंडा- लाने वाला या जीतने वाला , चोल -चोला, पुरम – नगर.

राजेंद्र चोला कहलाये गंगईकोंडा चोला जब उन्होंने अपने साम्राज्य की विजय पताका फहराई गंगा तक. जब उन्होंने केडा (मलेशिआ ) को जीता तो वे कहलाये केडारा कोंडा चोला।
इस मंदिर और राजधानी का नाम दर्शाता है उन अनेकों कथाओं और घटनाओं, मान्यताओं और श्रद्धाओं, धर्मों और अध्यात्म  की धाराओं को जो सब मिलकर हमें भारतीय बनाती थी, बनाती है. गंगा समूचे भारत में पूजनीय थी, तमिलनाडु में भी. इतनी महत्त कि एक सफल शासक ने अपनी राजधानी का नाम इस गर्व को दर्शाते हुए रखा, समुद्र पार कर जीते साम्राज्यों पे नहीं।शायद राजनैतिक परिचय विच्छिन्न और विभक्त होते हुए भी हम एक सूत्र से बंधे थे जो स्थूल की नहीं सूक्ष्म की महत्ता समझता था. 

First View of the temple, Gangaikondacholpuram

तमिलनाडू के चोल मंदिर का इतिहास:

चोला वंश के चरम काल में कम से कम 300 पाषाण मंदिरों का निर्माण हुआ. राजराजा चोला इसके महानतम राजा हुए जिन्होंने तंजावुर में 1010 CE में बृहदीश्वरा मंदिर का निर्माण पूरा किया। इन्ही के पुत्र राजेंद्र चोला द्वारा निर्मित गंगाईकोंडाचोलपुरम का बृहदीश्वरा मंदिर (1035 CE ) और राजराजा II का बनवाया ऐरातेश्वर मंदिर( 1166 CE), इन तीनो मंदिरों को, जो भगवान् शिव को समर्पित हैं, सम्मिलित रूप से यूनेस्को हेरिटेज में “The Great Living Chola Temples” के नाम से जोड़ा गया है. Living अर्थात जहाँ निर्माण से लेकर आज तक पूजा-अर्चना होती रही है. तमिलनाडु में महाबलीपुरम के अलावा ये ही एक अन्य यूनेस्को हेरिटेज साइट है. ये पोस्ट सिर्फ  गंगाईकोंडचोलपुरम के बृहदीश्वरा मंदिर पर है.

आज ये मंदिर कहीं दूर, किसी कोने में बना लगता है लेकिन जब ये बना था तो गंगईकोंडा  राजेंद्र चोला की राजधानी था. आज राजा के महल के अवशेष के नाम पर, मंदिर से डेढ़ km दूर उलकोट्टई गांव में , सिर्फ एक ढेर बचा है जिसे मालिगाईमेडू palace mound कहते हैं. राजधानी और महल का निर्माण 1023 CE – 1029 CE के बीच में हुआ था और मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा 1035 CE में राजेंद्र चोला ने की.

तेरहवीं सदी में चोला वंश के पतन के बाद गंगाईकोंडा  पंड्या और फिर विजयनगर साम्राज्य का अंग रहा. अट्ठारहवीं सदी में फ्रेंच और अंग्रेजों ने इस मंदिर को किले की तरह उपयोग किया जिससे इस मंदिर का बहुत भाग नष्ट हो गया.

गंगाईकोंडा के बृहदीस्वरा मंदिर का स्थापत्य और शिल्प:

अगर आप तंजावुर का मंदिर देख चुके हैं तो इस मंदिर में आपको हर क्षण तंजावुर की छाप दिखाई देगी।लेकिन यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ कम है और पर्यटक तो नगण्य।सर्दी की छुट्टियों में आपको कुछ विदेशी मिलेंगे, भारतीय तो बहुत ही कम.लेकिन यही इस मंदिर को और भी अधिक प्रिय बना देता है. मंदिर तो पहले ही किसी एक एकांत में ध्यानस्थ है, समय से परे; ASI ने रख रखाव अच्छा किया है, मखमली दूब के आँगन में, नील गगन के शामियाने के नीचे, सजीव पाषाण से धड़कते इसके दिल की बात , भक्त और पर्यटक दोनों को रूमानी पाश में बांध लेती है.

आज हम जिस टूटे द्वार से प्रवेश करते हैं, वो कभी भव्य गोपुरम रहा था. प्रवेश करते ही बलिपीठ के बाद विशाल नंदी के दर्शन होते हैं.

मंदिर एक आयताकार प्लेटफार्म पर बना है. नदी के ठीक सामने बने महामंडप में जाने के लिए उत्तर और दक्षिण दिशा से सीढियाँ हैं. महामंडप के प्रवेश द्वार पर चार हाथ और विकराल मुख के दो बड़े द्वारपाल हैं जो चोला काल की पहचान हैं. ऐसे ही द्वारपाल मंदिर के हर प्रवेश द्वार और सभी मंडपों पर खड़े हैं. महामंडप से अर्ध मंडप होते हुए हम गर्भगृह तक पहुँचते हैं.

तंजावुर की तरह ही इस मंदिर का विमान भी भव्य है. नौ-तलीय  इस विमान का शिखर कमल पर्णी है और इसके ऊपर कमल की कली के रूप में स्तूप है. लेकिन समानता बहुत अधिक होते हुए भी विभिन्नता है. जहाँ तंजावुर के विमान की  रूप रेखा एक पौरुष बल सी है, यहाँ विमान उतना ही भव्य और विशाल होते हुए भी कमनीय है. 

Shiva as Kalantak

शिव की चन्देस्वर अनुग्रह मूर्ति

शिल्प यहाँ तंजावुर से कम है  लेकिन वैसे ही हैं. लक्ष्मी, सरस्वती और शिव के अनेक रूप यहाँ भी दर्शित होते हैं. चंदेश्वर अनुग्रह मूर्ति निश्चित ही इन सभी में, सबसे अधिक सधे हाथों ने बनाई होगी। अर्ध मंडप के उत्तरी भाग की सीढ़ियों की उड़ान को रोकती है ये मूर्ति। चोला काल के सर्वोत्तम पाषाण विग्रहों में इसका स्थान  है. भगवान् शिव यहाँ चन्देस्वर को अपने आशीष से अनुग्रहित कर रहे हैं. 

चन्देस्वर अनुग्रह मूर्ति दक्षिण भारतीय मंदिरों में बहुत उत्कीर्ण है. चन्देस्वर प्रसिद्ध 63 तमिल नयनार संतों में से एक हैं. नयनार शिव के भक्त हैं. ये अनुग्रह कथा इस प्रकार है- चन्देस्वर गायों की देखभाल करते थे. गाय का दूध वो अपने रेत  से बनाये  शिवलिंग पर  डालते थे. पिता ने इस तरह दूध का अपव्यय होते सुना तो वो क्रोधित हो भागे आये. उस वक्त चन्देस्वर रेत से बने शिवलिंग के सामने ध्यानरत थे. पिता ने गुस्से से शिवलिंग पर लात मारी। चन्देस्वर का ध्यान भंग हुआ और उन्होंने पास पड़ी छड़ी पिता के पाँव  पर मारी जो कुलहाड़ी  में बदली जिससे उनका पांव  अलग हो गया. तभी शिव प्रकट हुए और उन्होंने चन्देस्वर को अपना पुत्र बना लिया एवं पिता का पांव पुनः ठीक किया। साथ ही उन्होंने चन्देस्वर को अपने धन की संभाल का उत्तरदायित्व दिया।

Chandeswar Anugrah Murti, Gangaikondacholpuram

दक्षिण भारत के शिव मंदिरों में चन्देस्वर का उपमंदिर होता है जो यहाँ भी है. जैसे नंदी के कान में अपनी बात रखते हुए मैंने पहली बार दक्षिण में ही देखा था, चन्देस्वर मंदिर में लोगों को ताली या चुटकी बजाते देखा। कुछ ऐसा इसलिए करते हैं कि चन्देस्वर सर्वदा शिव के ध्यान में मगन रहते हैं और उनका ध्यान अपनी और खींचने के लिए लोग ताली बजाते हैं. कुछ का कहना है कि ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि चन्देस्वर शिव के धन के प्रहरी हैं ( शिव ने उन्हें अपने धन सम्पदा की देखभाल का उत्तरदायित्व सौंपा था.) और लोग ताली  बजा कर  बताते हैं की उनके हाथ खाली हैं, कि वे कुछ भी नहीं ले जा रहे. दोनों ही कथाएं दिलचस्प हैं.

कला-बुद्धिजीवियों का कहना है कि इस चन्देस्वर अनुग्रह मूर्ति में राजेंद्र चोला स्वयं है जो शिव के चरणों में बैठ कर अनुग्रहित है. जो भी हो, शिव की अन्य अनुग्रह मूर्तियों में से मुझे ये सर्वप्रिय है. 

मंदिर प्रांगण में ही कुछ अन्य छोटे मंदिर भी है- मुख्य मंदिर के उत्तर में चन्दिकेश्वर और महिषमर्दिनी के उप मंदिर है. इसके अलावा गणेश और अम्मान मंदिर भी हैं. ईंट और प्लास्टर से बना शेर, जो बहुत बाद में जोड़ा गया,  एक अवांछित ढांचा है जो सौम्य प्रांगण में खटकता है. इसमें से सीढिया एक बड़े कुँए को जाती है. याली -वल्लरी के नीचे यहाँ भी inscriptions है लेकिन तंजावुर की तरह यहाँ पूरा का पूरा आधार इंस्क्रिप्शन्स से भरा नहीं।

मैंने आधा दिन बिताया यहाँ। ईश्वर के सानिध्य में, मंदिर के स्थापत्य में, तराशी हुई शिल्प प्रतिमाओं में, बोलते हुए प्रस्तर-अभिलेखों में, कांसे की चलायमान मूर्तियों को पास से देखने की इच्छा में, या फिर हरी दूब पर पसर कर वर्तमान से अतीत और पुनः वर्तमान में टाइम ट्रेवल करते हुए.

Backside wall of Garbhgriha, Gangaikondacholpuram.

 तंजावुर में अपने आपको टाइम-ट्रेवल करवाना मुश्किल है – पर्यटकों और श्रद्धालुओं का रेलमपेला आपको वर्तमान में ही रखता है. लेकिन यहाँ मंदिर के भीतर प्रवेश करते हुए मन राजेंद्र चोला के मन में प्रवेश कर रहा था जब उसने प्राण प्रतिष्ठा के वक्त, अपनी जय के गगन भेदी उद्घोष के बीच मंदिर में प्रवेश किया होगा और अपने ईश्वर के सामने मस्तक झुकाया होगा। क्या उसने भी  ईश्वर के सामने अपना अनुग्रह प्रकट किया होगा कि “तूने जो भी दिया मैं उसके लायक तो नहीं लेकिन तेरे दिए विवेक का सर्वदा- अच्छा या बुरा, जय या पराजय, यौवन की उत्कंठा या वानप्रस्थ की समझ, प्रति क्षण उपयोग करुँगा, कि तू मेरे जीवन का साध्य है और जो तूने दिया वो सब साधन  “. या उसने भी कई अन्यों की तरह अपने प्रभु को साधन बनाया होगा और अपनी इच्छाओं को साध्य। 

क्या विशालकाय पीतल के दीपों के झिलमिल प्रकाश में, पुजारी प्रभु पर ध्यान रख पाए होंगे या राजा-रानी और विशिष्ट मानवरों के आभूषणों की जगमग से विचलित हुए होंगे? सोलह बसंत पुराने दिल कनखियों से जुड़े होंगे तो पचास बसंत पार कर चुके दिल क्या सभी प्रभु की तरफ आकर्षित हुए होंगे? कौन जाने ? 
लेकिन स्थपतिपति और शिल्पकार तो अवश्य ही फुले न समाये होंगे जब उन्होंने जनमानस की फटी आँखे, विस्मित मुखमुद्रा देखी होगी। और भर गई होगी उनकी झोली उपहारों से और राजा के दिए पुरस्कार से। 

Shiva as Madanantak, with his one hand in the Tarjani attitude threatening Kamdev.


अन्य मंदिरों की तरह ही ये मंदिर भी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा था. कितने वणिकों और श्रेष्ठियों ने अपना व्यापार जमाया होगा , कितने संगीतज्ञों और नर्तकियों ने कला को चरम सीमा पर पहुंचाया होगा ?
और क्या मैं भी कहीं यहीं तो नहीं थी? कौनसा जन्म कहाँ रहा हो , कौन जाने? लेकिन ये जन्म तो इन प्राचीन अर्वाचीन घटनाक्रमों को देख रहा है. कि पांव में सनीचर लगा है इस जन्म में तो जो आज लाया है मुझे गंगैकोंडचोलपुरम में। …


 

7 Comments

  1. थोड़ा आखरी वाली मूर्ति के बारे में मदंतक कर बारे में हो सके तो और बताइयेगा…. बहुत कुछ नया जाना और नई जगह थी यह मेरे लिए…thanjavur प्रसिद्ध हो गया इसलिए ही वहां बहुत टूरिस्ट होते है….time travel करने की बात ही अलग लगी…एक और जानकारी तमिल नाडु में महाबलीपुरम के अलावा यह तीन मंदिर ही यूनेस्को site है….चेट्टिनाड के कुम्भकोणम और यहां चोला मंदिर जाने का बहुत वक़्त से सोचा है देखे कब जा सकेंगे….आपके आधे दिन की घुमक़्क़डी में हमे पढ़ने में मजा आ गया….

    1. सती की मृत्यु के बाद शिव गहन समाधी में चले गए. उस समय तारकासुर नामक राक्षस ब्रह्मा से वरदान पाकर निर्भीक हो गया और उसके अत्याचारों की सीमा न रही.एक वरदान ये था कि वो शिव के पुत्र के आलावा किसी अन्य से नहीं मारा जा पायेगा। शिव की समाधी भंग करने के लिए कामदेव जिन्हे मदन भी कहते हैं, को बुलाया गया. उन्होंने समय वसंत का मौसम ला दिया,शिव के चारो ओर सुगन्धित बयार,फूल खिल पड़े. पारवती जी उनके समक्ष खड़ी हुई. कामदेव ने शिव पर काम-बाण छोड़ाजिससे उनकी समाधी भंग हो गई. उन्होंने तत्काल जान लिया की समय वसंत और उनके मन में हलचल कामदेव ने उत्पन्न की है.क्रोध से तत्क्षण उन्होंने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म क्र दिया। कामदेव की पत्नी रति विलाप करने लगी. पार्वती और अन्य देव के कहने से मदन जीवित हुए किन्तु बिना शरीर के. तब उनका नाम पड़ा अनंग= without body. कामदेव के पुनः सहरीर में आने की भी कथा है लेकिन वो और कभी. शिव पुनः पार्वती के साथ गृहस्थ हुए और उनके पुत्र जन्मा कार्तिकेय जिसने तारकासुर का वध किया।
      अब शिल्पी ने इसे तर्जनी से इंगित क्र शिव का क्रोध दिखाया है यहाँ।इसी बड़े शिल्प के चारों ओर इसी कथा की घटनाये छोटे शिल्प में इसके चारों ओर बनी हैं. जैसे कि रति का विलाप,कामदेव का बाण छोड़ना।

  2. इस लेख में काफी कुछ नया जानने को मिला ….. बृहदीस्वर मंदिर, गंगाईकोंडाचोलापुरम बारे में मैंने कभी नहीं सुना था ….पर आपने काफी कुछ विस्तार से मंदिर प्रांगन , अलंकृत शिल्प, मूर्तियों के बारे में अच्छे से बताया ….. चित्र भव्य और सजीव लगे …..

    1. धन्यवाद रितेश। दक्षिण को करीब से जानने का मौका मिल रहा है.बहुत कुछ बाकि है अभी जो देखा है पर लिखा नहीं।

  3. जयश्री जी, पूरी पोस्ट एक सांस में ही पढ़ गया । इतिहास में चोल राजाओं के वीरता और कला प्रियता के बारे में खूब पढ़ा है । आज आपकी पोस्ट से उस को देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ । बहुत ही बढ़िया तरीके से विस्तार पूर्वक आपने ये पोस्ट लिखी । चंद्रेस्वर के रूप में मैंने भी राजेन्द्र चोल का ही पढ़ा है । डिस्कवरी चैनल की डॉक्यूमेंट्री में भी इसे राजेन्द्र चोल बताया है ।

    1. मुकेश जी, मैंने पोस्ट को बहुत टेक्निकल नहीं बनाया,इसके स्थापत्य का विवरण इस पोस्ट में किया ही नहीं।शिल्प भी सभी नहीं लिखे,पोस्ट का मुख्य उद्देश्य इस कम जानी हुई जगह को पर्यटन के दायरे में लाना ही था. किसी दिन सिर्फ इसके शिल्पों पर एक फोटो पोस्ट डालती हूँ.आपको अवश्य पसंद आएगी।

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