मध्य प्रदेश में यूँ तो अनेकों पर्यटन स्थल है, लेकिन मांडू कम प्रचलित होते हुए भी उनमे विशिष्ट है. मांडू दिल्ली की तरह ऐतिहासिक इमारतों का शहर तो है ही, लेकिन नैसर्गिक सौंदर्य में भी कम नहीं। इसके इसी नैसर्गिक सौंदर्य को पूर्ण निखार में देखने के लिए हमने इसकी यात्रा की मानसून में. ऐसे कुछ ही दर्शनीय स्थल हैं जहाँ प्रकृति-प्रेमी और इतिहास प्रेमी दोनों ही मुग्ध हो जाते हैं और मांडू उनमे अग्रणी है.
मांडू, मालवा ( मध्य प्रदेश) में विंध्याचल की पहाड़ियों में 2000 फ़ीट की ऊंचाई पर एक पठार पर बसाया गया था. मालवा का पठार इसे सामरिक सुरक्षा प्रदान करता था. माँ नर्मदा से फली-फूली घाटी, जिसे निमाड़ के मैदान कहते है, इस पठार की सुंदरता और सम्पन्नता दोनों के लिए वरदान थी, और आज भी है. किसी जमाने में मांडव नगर के नाम से प्रसिद्द इस नगर से व्यापारियों के दल पर दल गुजरते थे. बहुत ही संपन्न था तब ये. अच्छे दिन गए तो नाम भी गया- मांडव नगरी से मांडू बन गया.
इतिहास में मांडू पहली बार आया जैन तीर्थंकर आदिनाथ भगवान् की मूर्ति पर खुदे आलेख पर, जिसमे लिखा है कि ये मूर्ति एक जैन वणिक चन्द्रसिंग ने मंडप-दुर्ग के तारापुर जगह के मंदिर में विक्रम सम्वत 612 यानि ईस्वी सदी 555 AD में प्रतिष्ठित कराई थी. मंडप दुर्ग मांडव का प्राकृत भाषा का नाम था.
दसवीं सदी में मांडू का पुनः उल्लेख मिलता है कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार राज्यवंश में. इसी दसवीं सदी के अंत तक मांडू उज्जैन के परमार राज्यवंश के अधीन आया, जिनकी राजधानी रही धार, मांडू से ३० किमी की दूरी पर. इस राज्यवंश के राजा भोज का नाम तो बहुत सुना है हमने। राजा भोज को साहित्य में अत्यधिक रूचि थी. राजा मुंज, हर्ष आदि भी बहुत ही कुशल शासक थे परमार वंश के.
1227 ईस्वी में शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने मालवा पर आक्रमण किया और उज्जैन को ध्वस्त किया, किन्तु परमार राजा देवपाल ने संधि कर ली और मांडू आतताइयों से बच गया. ये पहला मुस्लिम कब्ज़ा था मालवा पर.
1293 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया और मांडू की सम्पदा लूट कर ले गया, किन्तु मांडू तब भी परमार शासन में ही रहा.
1305 ईस्वी में फिर आक्रमण हुआ. अबकी बार आक्रमण किया अल्लाउद्दीन खिलजी ने और उसने मांडू के तत्कालीन राजा महलक देव को परास्त किया. मांडू अब दिल्ली सल्तनत का हिस्सा हो गया.
इसके बाद मांडू के शासक बदलते रहे, समय का चक्र चलता रहा. इसी चक्र के पहिये को एक बार रोकते हैं हम सन 1542 में, जब शेर शाह ने मांडू को जीता और शुजात खान को उसकी मनसबदारी सौंपी। शुजात खान के मरने पर उसके बेटे मलिक बायजीद ने अपने भाइयों को हराकर अपने आपको मांडू का स्वतन्त्र शासक घोषित किया एक नए नाम से- बाज़ बहादुर खान.
बाज़ बहादुर ने चंदेल वंश में जन्मी और गोंड वंश के दलपत शाह से ब्याही रानी दुर्गावती पर आक्रमण किया। राजा दलपत शाह की मृत्यु हो चुकी थी और राज्य रानी संभाल रही थी. रानी ने सामरिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनी राजधानी चौरागढ़ से हटाकर सिंगौरगढ़ कर ली थी. बाज़बहादुर की बुरी हार हुई.
रानी दुर्गावती के हाथों हारकर बाज़ बहादुर ने अपना सारा समय और ध्यान लगाया संगीत पर जिसमे उसे महारत हासिल थी. रूपमती जो सुंदरता और गायकी, दोनों की धनी थी, बाज़ बहादुर को मन भा गई और उनकी प्रेम-कथा आज भी मालवा के लोक गीतों में गाई जाती है. किन्तु अच्छा समय टिक न सका. अधम खान के नेतृत्व में अकबर के सेना ने 1561 ईस्वी में आक्रमण किया जिसमे बाज़ बहादुर को मुंह की खानी पड़ी. बाज़ कायर अपनी जान बच कर भागा, रूपमती को छोड़ कर. अधम खान के हाथों पड़ने से बचने के लिए रूपमती ने जहर खाकर मृत्यु को वर लिया। रानी दुर्गावती से हारा, अधम खान से हारा सो हारा, रूपमती को छोड़ भाग निकला। जाने क्या सोच कर उसने अपना नाम बाज़ बहादुर किया था. बाज़ संगीत शायद अधिक सही रहता।
निमाड़ के मैदानों से होते हुए, विंध्याचल की हरीभरी चढ़ाई चढ़कर, मांडू में प्रवेश करते हैं दिल्ली दरवाजे से. जैसा कि सभी सामरिक दुर्गों में होता है, मांडू भी एक भव्य और अति विस्तृत परकोटे से घिरा है. परकोटे में प्रवेश के लिए कई दरवाजे हैं जैसे कि आलमगीर दरवाज़ा, जहांगीर दरवाजा, आदि. इनमे दिल्ली दरवाजा इसका मुख्य दरवाजा है, जिसे खड़ी ढ़ालनुमा और घुमाव वाले रस्ते पर बनाया गया है जिससे कि आक्रमणकारी सेना की गति को कम किया जा सके और परकोटे के भीतर प्रवेश मुश्किल हो जाये। इन दरवाजों से प्रवेश करते ही मांडू के स्मारक दिखाई पड़ने लगते है. साथ ही दिखती है दुर्गम खाइयां, जो मानसून में तो हरे रंग की चादर लपेट कर अपनी दुर्गमता को छिपा, अनेको छोटे मोटे झरनों से अपने को सजा, अपने रूप-लावण्य से मन मोह लेती हैं.
आज जो इमारतें हम मांडू में देखते हैं, उनमे से अधिकाँश 1401 से 1526 ईस्वी में बनी थी. इस लेख में सिर्फ एक संक्षिप्त फोटो-परिचय दे रही हूँ. लिखूंगी इन पर विस्तार से कभी और-
मांडू के स्मारकों को हम सात ग्रुप में विभाजित कर सकते है-
प्राचीन स्मारक- लोहानी गुफाये और जीर्ण शीर्ण मंदिरों के अवशेष
रॉयल ग्रुप
मांडू गांव का ग्रुप
सागर तालाब ग्रुप
रेवा-कुंड ग्रुप
दरिया खान ग्रुप
अन्य इमारतें
प्राचीन स्मारक में लोहानी गुफाये और अति जीर्णशीर्ण मंदिरों के अवशेष मिलते है और सामान्य पर्यटक के लिए इसमें कुछ रुचिकर नहीं है. हाँ, अगर आप पुरातत्व और इतिहास में रूचि रखते हैं तो अवश्य जाइये। इन गुफ़ाओं की जाँच में मिली करीब 80 हिन्दू मूर्तियां अब होशांग शाह के मकबरे में बने म्यूजियम में रखी हैं.
रॉयल ग्रुप– ये एक टिकट-याफ्ता ग्रुप है , जिसमे एक टिकट से आप इसकी सभी इमारतों को देख सकते है.
इसकी मुख्य इमारतें है- जहाज महल, हिंडोला महल, दिलावर खान का मकबरा, शाही हम्माम, चंपा बावड़ी, जल-महल, गदा शाह की दूकान, उजली बावड़ी, अँधेरी बावड़ी,
मांडू गाँव ग्रुप– ये भी एक टिकटेड ग्रुप है जिसमे आप देख सकते है- जामी मस्जिद, होशांग शाह का मकबरा, अशर्फी महल.
सागर तालाब ग्रुप की मुख्य इमारतें है- जाली महल, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, कारवां सराय, मलिक मुगीथ की मस्जिद,
दरिया खान ग्रुप में हैं- हाथी महल और दरया खान का मक़बरा।
रेवा-कुंड ग्रुप की मुख्य इमारतें है- रेवा कुंड, बाज़ बहादुर का महल, रूपमती का मंडप,
(महाबलीपुरम, तमिलनाडु की यात्रा गाइड यहाँ पढ़ें)
स्मारकों से दिल ऊब जाए और हरियाली में दिल डूब जाये तो इस थोड़ी खट्टी, थोड़ी मीठी, मांडू की खास खुरासानी इमली का जायका लीजिये। अब इस इमली का इतिहास भी स्मारकों से कुछ कम नहीं। सल्तनत के साथ आई, और उसके साथ ही इसने भी अपनी जड़े जमाई। नाम तो सब कुछ बता ही दे रहा है- ऐतिहासिक खोरासन आज के पश्चिमी अफगानिस्तान, पूर्वी ईरान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान का मिला भूखंड था. मांडू में इतिहास के गवाह है इसके स्मारक और गर्व से सर उठाये, जहाँ-तहँ खड़े ये खुरासानी इमली के पेड़.
चिस्ती महल, सोनगढ़ दरवाजा आदि अन्य स्मारक हैं.
यात्रा सुझाव
मांडू मध्य प्रदेश में धार जिले में है. यह रतलाम, इंदौर से सड़क मार्ग से जुड़ा है. रतलाम, इंदौर आदि के लिए देश के सभी हिस्सों से अच्छी रेल सेवाएं उपलब्ध हैं.
मांडू में रुकने के लिए सभी बजट के होटल उपलब्ध हैं.
गर्मियों को छोड़कर कभी भी मांडू जाया जा सकता है किन्तु वर्षा ऋतु में इसकी छटा देखते ही बनती है.
मांडू की सैर का आनंद दोगुना हो जाता है वर्षा ऋतु में, और तीन गुना यदि आप राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित गाइड विश्वनाथ जी के साथ यहाँ घूमे।
मांडू में घूमने के लिए आप साइकिल सवारी भी कर सकते है.
मांडू में यूँ तो कई दिन बिता सकते हैं, लेकिन दो दिन में आप सभी इमारतों को संतुष्टि से देख सकते हैं.
मांडू के पास ही महेश्वर है, जहाँ की सैर अवश्य मांडू यात्रा प्लान में रखें और उसके लिए एक दिन रखें।
very nice and vivid description, seems we are watching it through your words, the IMLI history is a discovery in itself; more travel to you, God Bless.
Thanks Bhavesh Ji.
Shandaar varnan
Thanks Karan!
Pics and description is amazing and so in depth….
Thanks Pratik, somehow your comment missed my attention and hence the delay.
From where canI gett this Mandu ki imli .? Anybody can send it to Gujarat?
I guess, you need to plan a trip to Mandu 🙂