सिक्किम का बुरांश वाला बसंत

कितने बसंत और उसके कितने रंग. हर वर्ष प्रतीक्षा में रहते होंगे फूल भी कि बसंत आये तो हम खिलें। ऐसा नहीं कि साल भर में कभी फिर फूल नहीं खिलते। खिलते हैं मगर नव पल्लव के साथ नहीं। बसंत में तो फूल के साथ साथ कोमल किसलय की छठा भी बिखरती है. अब पीपल पर तो बसंत पुष्प-पाहुन बनकर नहीं आता, पर्ण -पाहुन ही बनकर आता है और उसकी मादकता सेमल या गुलाब से कम नहीं।

यूँ तो बासंती हवाएं भी मादक हैं, गुनगुनी बसंती धूप भी किन्तु बसंत की बहार तो पेड़-पौधे ही लाते हैं. मैदानों में बसने वाले पेड़ पौधों का बसंत तो हम खूब जानते हैं, लेकिन पहाड़ों का बसंत भी निराला ही होता है. उसमे भी बुरांश के बसंत की तो बात ही निराली है.

जब पहाड़ों में बुरांश खिलते हैं तो जो हाल मैदानों में पलाश के खिलने से होता है वही पहाड़ों में बुरांश से होता है. अब कामदेव के बाण में सभी के लिए तीर रहते हैं !

सिक्किम में बुरांश

तो इस बुरांशी-बसंत के लिए सिक्किम में हम पहुंचे बारसे /वारसे बुरांश सेंचुरी में ट्रेक करने। सिक्किम में बुरांश की कोई 30 प्रजातियां पाई जाती है. नीचे के पहाड़ों पर मार्च-अप्रेल में ये एक साथ खिलते हैं, फिर उसके बाद ऊपर के पहाड़ों में.

Barsey Rhododendron Sanctuary

नीचे के पहाड़ों पर विशाल और मध्यम वृक्ष जिन पर शोभते है लाल-गुलाबी-बैंगनी- नीलाभ-सफ़ेद के कई टोन के फूल तो अल्पाइन पहाड़ों पर जमीन से सटे जटाओं वाले छोटे पौधें जिनमे लगते हैं हल्का बैंजनीपन लिए हुए बुरांश। लेकिन सिर्फ ऊंचाई ही भिन्नता नहीं लाती। चट्टानी पहाड़, नदी किनारे, दूसरे बड़े पेड़ों पर लगने वाले एपिफाईटस, बड़े पेड़ों की छाँव में पलने वाले, भिन्न भिन्न परिस्थिति के अनुसार भिन्न भिन्न बुरांश।

यूँ सिक्किम में बुरांश को गुराँश कहते हैं, नेपाली भाषा के अनुसार। अंग्रेजी में बुरांश को rhododendron कहते हैं जिसकी जड़ में है ग्रीक भाषा के Rhodon – गुलाब और डेंड्रॉन यानि पेड़.

Barsey Rhododendron Sanctuary
Rhodendrons bloom and bloom across Sikkim.

गुराँश सिक्किम का राजकीय पेड़ भी है लेकिन कौनसा ? गुराँश की Heun Pate Gurans गुराँश प्रजाति जिसका नाम है Rhododendron niveum Hook. f. इसके फूल नीले-बैंजनी रंग के होते हैं और इसकी पत्तियों की निचली सतह बर्फ सी धवल होती हैं, जो समय के साथ धूसर हो जाती है.

खैर, ये तो बात हुई बसंत और गुराँश/बुरांश की। हमारा अनुभव कैसा रहा, अब ये जानिए।

हिले-वारसे ट्रेक, सिक्किम

तो जनाब हम चले कालुक से हिले गांव तक टैक्सी में. रस्ते में आया सोरेंग, जहाँ ड्राइवर को कुछ पंद्रह मिनट का काम करवाना था गाड़ी में. उसने हमारी यात्राओं के किस्से सुनकर हमें सीढ़ी चढ़ा दिया भीलडारा ट्रेक की। उसकी कहानी फिर कभी। बस ये जान ले अभी कि हमने बीस मिनट की बजाय कोई डेढ़ घंटा वहां लगा दिया।

खैर घने जंगलों से गुजरते हुए, नितांत चुप्पी की घनघोर आवाज़ में विघ्न डालने वाली मनीष की ड्राइवर से सिक्किम की राजनीती की बाते न चाहते हुए भी सुनते हुए, टेढ़े-मेढ़े बल खाते रास्तों से जब पहुंचे हिले तक तो बादल गहराने लगे थे. समय था दिन के कोई बारह बजे का. टिकट लेने तक फुहार भी डालने लगे ये बादल . रेनकोट तो थे लेकिन आशंका थी कि बारिश तेज़ पड़ेगी तो छाते भी आनन् फानन किराये किये गए.

Hilley Varsey Trek
Photos from Party No. Two’s expedition inside the Sanctuary

तो चल पड़ी “हम दो हमारे दो ” की सवारी सेंचुरी में। कोई नहीं था वहां हमारे सिवा। पिछले दिन हुई बारिश से मिट्टी का रास्ता कहीं कम तो कहीं ज्यादा गीला था. छाते को ताने ऊपर से पड़ती बूंदो से बचते, और नीचे को देखते गीली मिटटी और जोंकों से बचते हुए चलना दूभर हो रहा था. थोड़ी ही देर बाद राह थोड़ी आसान हो गई क्योंकि अब मार्ग थोडा पथरीला हो गया था. लेकिन जोंकों का खौफ अभी भी था.

पेड़ों से हठात चिपकी मॉस उन्हें भुतहा बना रही थी तो उड़ती हुई धुंध वातावरण को रहस्यमय। नहीं, हमें कोई डर नहीं लग रहा था, लेकिन छोटे ट्रेकर की कुट कुट चालू हो गयी थी. हम उससे देख कर चलने की हिदायत दे रहे थे ताकि वो गीले में छपाक से पांव दे के जूते गीले न कर ले। लेकिन जब आप कहो कि बच्चे ऐसा नहीं करना, वे अवश्य वैसा ही कर लेते हैं. उसने भी दलदल नुमा मिटटी में पांव डाल ही दिया।

Hilley Varsey trek
Hilley Varsey trek in rain

थोड़ी देर बाद ही उसके जूतों पर दो जोंक चढ़ गई. उन्हें हटाया तो मेरे जूतों पर चढ़ी मिली। अब बारिश, छोटे की किट किट और जोंकें – ट्रेक का आनंद तो दूर, माहौल बिगड़ा जा रहा था. आने-जाने समेत ट्रेक चार किमी का था. अभी तो आधा किमी भी न चले थे.

थोड़ी मान मनुहार, थोड़ा समझा बुझा के, थोड़ा जोर-जबरदस्ती से और आगे बढ़ाया। लेकिन उसके जूतों में पानी भर चुका था , उसी की गलती से और अब वो किचमिचा रहा था. हमने उसे याद दिलाया कि वह तो ट्रेक का बहुत शौक़ीन है, चार साल का था तबसे ट्रेक कर रहा है, अब क्या मुश्किल हुई पड़ी है जब ग्यारह साल का हो गया है.

तपाक से जवाब आया- “मैंने कोई brogues नहीं पहन रखें हैं. गीले जूतों से मैं नहीं चलूँगा।”

दो गए, दो लौटे

थोड़ी देर और चलने के बाद बारिश बढ़ने लगी. मुझे लगा- ये छोटा सभी का ट्रेक ख़राब करेगा आज. तुरत फुरत से मैंने उसके साथ वापस लौटने का निर्णय लिया। मनीष ने साथ चलने का निर्णय लिया। मैंने वीटो पावर का दुरूपयोग किया, और मनीष और बड़े बेटे को आगे ट्रेक करने का कहा. साथ लाया गया भोजन आधा -आधा बांटा। फिर छोटा और मैं उल्टे लौट पड़े.

Hilley Varsey Trek
Hilley Varsey Trek

बरस पड़ी बारिश, बच गए हम

अब वो बड़ा खुश हो कर, राह के मजे लेते हुए चलने लगा. बारिश और तेज़ हुई. सर पर पैर रखकर, और पैर पर छाता रखकर हम दोनों भागे और बाहर टिकट खिड़की पर आकर रुके। वहां काउंटर पर अब इस बारिश में कोई नहीं था. हमने दरवाजा ठेला और भीतर जाकर खड़े हो गए बारिश से बचने को.

उधर उन लोगों को भी एक शेड मिल गया अंदर जहाँ बारिश से बचने को ठहर गए और भोजन निपटा डाला।

टिकट बाबू आये तो उन्हें यूँ उनकी केबिन में हमारा बिना इज़ाज़त घुस पड़ना ठीक न लगा. उन्होंने नज़दीक की चाय नाश्ते की दूकान में जाने को कहा. अब हम दोनों भाग कर उस दुकान में पहुंचे। वहां पहले से ही अंदर छह लोग ताश का अड्डा जमाये थे. दुकानदार ने हमें बैठने को कुर्सी दी.

उसने तुरंत ही मेरी असहजता भांप ली. बड़े आराम से उसने चाय पानी और भोजन के लिए पूछा और बिना कुछ कहे मुझे सुरक्षा के लिए आश्वस्त कर लिया। अब छोटे को मोबाइल पकड़ाना पड़ा. बच्चों को ये ट्रिक बहुत अच्छे से आती है कि कब उन्हें जो काम मना हैं, उसके लिए छूट मिल सकती है. मैं भी जात से बनिया हूँ। अगले दिन का मोबाइल का कोटा जीरो करने का बारगेन कर लिया। चित उसकी तो पट मेरी। डील फाइनल करके हमने अपना खाना निकाला, खाया और चाय के लिए आर्डर किया।

बारिश अभी भी लगातार पड़ रही थी. चाय की चुस्कियों के साथ मैं उन छह लोगों के ताश के कहकहों और उनकी ना समझ में आने वाली नेपाली में गुफ्तगू के साथ बारिश की खिलखिलाती हंसी तो कभी हरहराती हवा के साथ हुई बूंदों की कहासुनी भी सुन रही थी.

बारिश और हवा की इस आवारगी से मौसम का मन बैठ गया. स्वेटर निकाल कर पहना, छोटे को भी पहनाया। जब मां को ठण्ड लगे तो ठण्ड पड़ रही होती है, मां को गर्मी लगे तो गर्मी – किसी थर्मामीटर की कोई जरुरत नहीं और बहस की कोई गुंजाइश नहीं (जब तक ऐसी चले तभी तक, बड़े ने अपना थर्मामीटर इज़ाद कर लिया है )। मोबाइल के चक्कर में उसने भी बहस बाजी नहीं की.

थोड़ी ही देर बाद बारिश कम हो गई और फिर रुक गई. मौसम खिल कर उठ बैठा। बाहर निकल कर आस पास फुदक रही चिड़ियों को निहारा। पुनः बारिश शुरू हो गई तो फिर से अंदर को भागी।

उस दिन बारिश ने बस यूँ ही लुका- छिपी खेली। उधर वो लोग भी छाता ताने, छटा निहारते आगे बढ़ते रहे। अरे! मेरे पास कोई दिव्य दृष्टि नहीं! ऐसा थोड़ी है कि हम हमेशा के लिए अलग हुए थे. पार्टी नंबर दो ने बाहर आकर बताया था.

Hilley Barsey Trek

अंदर एक जलाशय तक ट्रेक किया था उन लोगों ने , जिसके बाद वो लौट आये. अंदर कोई था ही नहीं तो वो कहाँ तक पहुंचे, कितना बाकी रहा, ये सब अनजाना ही रहा उनके लिए यानि हमारे लिए.

अंदर ट्रेक में वे लोग बांस के झुरमुटों से, लटकती लताओं से भरे गहरे रास्तों से एक खुली घाटी में पहुंचे थे, जहाँ अनेकों बुरांश के पेड़ जड़े थे. बाहर भी कई पेड़ बुरांश से लदे पड़े थे. लेकिन दो दिन से हुई बारिश ने बहुत फूल गिरा दिए थे. उन्हें भी अंदर ट्रेक पर कुछ कुछ पेड़ ही भरे मिले। अधिकांश से फूल झड़ चुके थे.

Photos from Party No. Two’s expedition inside the Sanctuary

ये ही वन्यजीवी होने का ट्रेडमार्क गुण है. नियत किये गए अपॉइंटमेंट पर मिलने आते ही नहीं। आपके पहुँचने से या तो कुछ मिनट पहले निकल लेते हैं, या कुछ मिनट बाद आते हैं. कभी कभार समय पर आ भी जाये तो झलक दिखा देते हैं बस. अब चाहे कॉर्बेट या गीर या रणथम्बोर के जानवर हो या केरल में नीलकुरिंजी की सामूहिक फ्लॉवरिंग।

Photos from Party No. Two’s expedition inside the Sanctuary

अब इसी ट्रेक को लें। इन कमअक्ल बुरांश को क्या पता कि बंगलौर से कितने दिन पहले टिकट बुक करवाना पड़ता है या कि बच्चों की छुट्टियां कब होती है, ….ये तो बस मनमौजी है, कैलेंडर से आज़ाद। इसे ये भी नहीं पता कि अगर ये मनमौजी है तो हम कोई मन के गुलाम नहीं। कोई राह का रोड़ा मन नहीं दुखा सकता और न ही मनचाहा न होने पर होता इस मन को कोई मलाल। बुद्धि और विवेक दिया है ईश्वर ने इस मन को चलाने के लिए.

जब तक वो बाहर लौटे, धूप ने अपना सात रथों का घोड़ा, मेरा मतलब सात घोड़ों का रथ निकाल लिया था. बूंदों ने अपना अंत समय समीप होने के बावजूद धूप की अगवानी के लिए इंद्रधनुष की माला तैयार की. जाना मैंने कि ये भी मन की मौज में नहीं, मालिक की मौज में ही रहती थी. और ये सभी वन्यजीवी भी मन की मौज में नहीं, उसकी मौज में रहते और उसी अनुसार जीते हैं.

मूल बात ये है कि जो उसकी मौज में रहता है वह मजे में रहता है. अब चाहे बच्चे आपके प्लान से न चले, बुराँश आपके अनुसार न खिले, बूंदे असमय आन पड़ें, सब ठीक.

बस, मौज में रहो….उसकी!

Views during the evening drive from Hilley to Kaluk

( मैदानों का बसंत देखा, पश्चिमी घाटों का भी, हिमालय के पहाड़ों का भी , लेकिन थार में बसंत कैसा होता होगा ये नहीं देखा। आप में से किसी ने देखा हो तो बताएं मुझे। )

हिले वारसे यात्रा गाइड

हिले वारसे क्या है और कहाँ है?

हिले और वारसे , पश्चिम सिक्किम में दो गांव है. सिक्किम में बुरांश के लिए सेंचुरी बनी है जिसे बारसे या वारसे रोडोडेंड्रोन सेंचुरी के नाम से जाना जाता है. इस सेंचुरी में प्रवेश के लिए कुछ पॉइंट है, जिनमे हिले गांव सबसे अधिक उपयुक्त है क्यूंकि यहाँ तक गाड़ी जाती है।

हिले गांव पेलिंग से 100 किमी, गंगटोक से 130 किमी और कालुक से 50 किमी है.

हिले वारसे ट्रेक करने के लिए कहाँ रुकें?

हमने ये कालुक से किया था. सबसे नज़दीक है ओखरे गांव, जहाँ कुछ होमस्टे की सुविधा है. सबसे नज़दीकी क़स्बा है सोमबारे। आप सोरेंग में भी रुक सकते हैं. लोग पेल्लिंग और गंगटोक से भी करते हैं लेकिन वो बहुत लम्बा और महंगा है अगर प्राइवेट कार से करें। पब्लिक ट्रांसपोर्ट अच्छा नहीं है.

क्या आप बारसे सेंचुरी में रुक सकते हैं?

हाँ, हिले से बारसे तक ट्रेक करके आप बारसे में गुराँश लॉज में ठहर सकते हैं. उस तरह आप सूर्योदय और आगे तक भी काफी घूम सकते हैं अगले दिन. उसकी बुकिंग की अनिश्चितता के चलते हमने परिवार के साथ वहां ठहरने की नहीं सोची।

ट्रेक कितना मुश्किल है ?

ट्रेक कुल चार किमी का है – आना और जाना। ट्रेक बहुत ही सरल है और बहुत सुन्दर भी. बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी कर सकते हैं.

बारसे रोडोडेंड्रोन सेंचुरी कब जाए.

मार्च अप्रेल का मौसम में, जब बुरांश की सामूहिक फ्लॉवरिंग होती है.

Leave a Reply

error: Content is protected !!