बलुआ पत्थर का बनना अनुकूल रहा राजस्थान में. अनेकों रंगों में मिलने वाला ये पत्थर अपने आपको ऐसा बनाता है कि समय के थपेड़ों के सामने तो यूँ नहीं झुकता किन्तु कुशल हाथों में छेनी हथोड़ा हो तो अपना निज मिटा कर उसका दिया रूप लेता है. निज के मरण पर जन्मा सौंदर्य जैसे मीरा के भजन और दादू के दोहे। ऐसी ही हैं ये हवेलियां भी। शेखावटी और जैसलमेर की तरह प्रसिद्धि तो न पाई हैं इन्होने, लेकिन अगर आप यहाँ हैं तो इन गलियों से गुजरना एक उम्दा अनुभव बनेगा- बाह्य और भीतर यात्रा का.
हिन्दी लेख एवं वृत्तांत
बर्ड वाचिंग के लिए बाइनोकुलर कौनसे खरीदें?
तो आपने मेरी ‘बर्ड वाचिंग यानि पक्षी अवलोकन कैसे करे’ की पोस्ट पढ़ ली है और आप की पक्षियों में उत्सुकता जाग्रत हो गई है. इसके लिए, जैसा मैंने उस […]
वायनाड का भोजन और आतिथ्य
लंच में बना एरिशेरी – कद्दू और मसूर से बना stew , कुट्टू करि , कुछ चटनियाँ जिसमे सबसे स्वाद थी इंजीपुली (अदरक इमली की चटनी ) और साथ में चावल। बड़े बेटे ने तो ऐसे खाया जैसे इसके बाद कभी खाने को नहीं मिलेगा। उसको ऐसे खाते देख मेजबान ने बड़े ही प्रेम से उसकी प्लेट फिर से भर दी, जैसे उसकी दादी करती है. लेकिन जब छोटे ने भी और माँगा तो श्रीजा के चेहरे पर मुस्कान दूर तक फ़ैल गयी.
Alexandrine Parakeet , हिरामण सुग्गा
स्कूल से लौट कर बस से उतरते ही बच्चे पूछते – आज पार्टी कहाँ हो रही है? और फिर हम मां -बेटे निकलते Delhi- NCR के हमारे सेक्टर के पार्क […]
महाबलीपुरम यात्रा गाइड
महाबलीपुरम के मुख्य प्राचीन स्मारक हैं- रॉक कट गुफा मंदिर, रथ मंदिर , तटीय मंदिर और एकल शिल्प। ये सभी पल्लव वंश के काल में बने थे.
राजस्थानी संस्कृति में कुरजां पक्षी
लोकगीत सदा से ही देश काल की सच्ची परिस्थिति बयान करते रहे हैं. कुरजां ऐसा ही एक लोकगीत है, जिसमे नायिका/विरहिणी कुरजां पक्षी के हाथ अपने प्रिय को संदेसा भेजती है कि विवाह कर, वे उसे क्यों अकेली छोड़ गए हैं. कुरजां जाके नायक को सन्देश देती है और उसे भी वियोग में उदास पाती है. संदेसा पाकर नायक नौकरी/ साथी छोड़ कर एक सजीले घोड़े पर रातों रात चल देता है , पूरी रात बेतहाशा चलके भोर होते होते अपने घर अपनी प्रिया के पास पहुँच जाता है.
रामनगरा , रामदेवरा बेट्टा – गब्बर की खोह: एक चित्रलेख
शोले फिल्म के गब्बर सिंह को कौन भूल सकता है। और उसकी खोह? वो फिल्म तो उत्तर भारतीय बैकग्राउंड में थी लेकिन गब्बर की डेन यहाँ दक्षिण के कर्णाटक में , बंगलोर से 60 km दूर, रामनगर के रामदेवरा बेट्टा में थी. जहाँ फिल्म में उसकी खोह का चारों ओर पथरीला पहाड़ उसके दिल को ही प्रतिबिंबित करता था- बंजर, क्रूर,सूखा,जहाँ एक अंकुर भी प्रेम और दया का कभी न फूटा हो ; लेकिन आज ये स्थान उसके ठीक विपरीत – हरा-भरा और रुमानियत से लबरेज है. इतना सुहाना और सुकून दायी कि गब्बर भी यहाँ आकर ग़ालिब ही बन बैठे।
बृहदीश्वरा मंदिर, तंजावुर
दक्षिण के मंदिरों में विमान (tower) का एक रोचक इतिहास है. तंजावुर के बृहदीश्वरा से पहले बने मंदिरों का विमान ऊंचाई में मध्यम रहा. राजजचोला और फिर राजेंद्र चोला के बने मंदिरों में विमान की ऊंचाई अधिकतम रही. फिर उसके बाद पुनः विमान की ऊंचाई कम होती गई, लेकिन गोपुरम की ऊंचाई बढ़ती ही चली गई.
कैसे करें पक्षियों की पहचान (‘बर्ड वाचिंग’)
सुग्गा पंखियों को देखा है अमरुद के पेड़ पर धावा बोलते हुए. कौए को मुंडेर से उड़ाया है कई बार अपने मनचाहे मेहमान को घर बुलाने के लिए.
लेपाक्षी (आंध्र प्रदेश) के मुराल / चित्र
चित्रसूत्र कहता है -“विशेषज्ञ रेखाओं को (delineation and articulation of form) को देखता है, पारखी प्रकाश और छाया के रूपं को देखता है, स्त्रियां गहने, सामन्य-जन रंगों की विविधता और शोभा से प्रभावित होते हैं, अतः चित्रकार में ऐसी दक्षता चाहिए कि सभी उसके चित्र से आनंदित हो सकें।”
मांडू यात्रा गाइड
मध्य प्रदेश में यूँ तो अनेकों पर्यटन स्थल है, लेकिन मांडू कम प्रचलित होते हुए भी उनमे विशिष्ट है. मांडू दिल्ली की तरह ऐतिहासिक इमारतों का शहर तो है ही, […]
पूक्कलम: ‘ओणम’ पर फूलों की रंगोली
भारत त्योंहारों का देश है. हर दिन यहाँ एक न एक उत्सव होता ही होगा। कुछ त्यौहार पूरे भारत में मनाए जाते हैं जबकि अन्य केवल राज्य विशेष में मनाये […]