रंगों वाली होली के लिए बंगलोर के होली बाज़ार जाना हुआ। बंगलोर में फाग के रंगों की इतनी मांग है कि हर गली-कूचे, नुक्कड़-मोड़ पर कदम कदम पर दुकाने सजी है। आधी से कम दुकानों पर तो भांति भांति के हरे रंगों कि बहुतायत है, बाकी की दुकाने अलग अलग रंग की अबीर-गुलाल से यूं लदी पड़ी हैं, कि दुकान पर आने वाले हर ग्राहक पर जाने-अनजाने रंगों की छींट पड़ ही जाती है। फर्श से अर्श तक अटी पड़ी हैं ये दुकाने ।
पिंक-पुई की दुकानों पर रंग बस थोड़ा सा ही बचा है। बंगलोर वालों ने इसे “बेंगलोर-सकुरा” का इंपोर्टेड तमगा दे कर ट्विट्टर और फेसबुक पर पहले ऑनलाइन ही खरीद-बेच दिया। आज कोई पचास पिंक-पुई की दुकाने घूमी, लेकिन सिर्फ दो के पास ही फुल-स्टॉक था, बाकी पर खतम।
जकरंदा की तो बहुत दुकाने है मेरे आस-पास ही, मुझे आज ही पता लगा। कोई तीस दुकाने सजी थी इसके बेंजनिया-नील गुलाल की. इसके यहाँ हरा रंग तो चुटकी भर भी नहीं था।
पीले रंग की यूं तो बहुत भिन्न भिन्न दुकाने थी- कॉपर पॉड की, सिल्वर-ओक की, लेकिन मुझे तो “yellow Tabebuia” का पीला रंग बहुत मन भाया। कहीं कहीं इसने थोड़ा हरा रंग भी रखा था बेचने को।
अमलतास की दुकान मेरे नजदीक कोई थी नहीं, उसके लिए कब्बन या लाल बाग जाना पड़ता। वहाँ मुझे तो पीले गुलाल कि लटकती पोटलिया मिल जाती, लेकिन मैं मित्रों के लिए न ला पाती। कारण ये है कि फोन केमरे के अलावा कोई और केमरा-करेंसी वहाँ मान्य नहीं है पीछे तीन चार महीनो से, ताकि कोई रसिक चलते-फिरते किसी रस-मग्न युगल की तस्वीरे न ले। वैसे यहाँ बेंगलोर के रसिक-युगल दिल्ली के प्रेमी-युगलों के मुक़ाबले बहुत फीके हैं। उनके भला क्या चित्र उतारे कोई। नजदीक बैठने के अलावा कुछ करते ही नहीं
लाल रंग वाले “बॉटल ब्रश” के मालिक को मैंने कहा कि उसका माल पुराना सा लग रहा है। “कोरल” को आ जाना चाहिए था, लेकिन आया नहीं। गुलमोहर तो लेट-लतीफ़ है, होली के बाद अपनी दुकान लगाता है। लेकिन कान्हा की मर्ज़ी, राधा के लिए उसने एक दो दुकाने खोली जिन पर अभी रंग की टोकरिया एकाध ही आई हैं। लेकिन मुझे तो मिल गई। मीरा के देस की हूँ न, इसलिए।
छूने भर से गायब जो जाने वाला “रैन-ट्री” का बड़ा ही नाजुक गुलाबी रंग का तो भई, बेंगलोर में होलसेल मार्केट है। आमने सामने दुकाने खोल के गगन को छूने जैसी ऊँचाइयों पर मिल कर ऐसे तोरण बनाते हैं कि “ग्रीन टनल”। उसके नीचे कोई तीन-चार सौ ग्राहकों को छाया मुफ्त में देते हैं, साँझ होने पर अपने हरे रंग के कोठे बंद कर देते हैं।
पीपल के यहाँ पारदर्शी, झिलमिलाता हल्का चमकता हरा रंग तो था ही, गुलाबी-लाल-कत्थई का तो पूरा गालों पर लगाने वाला मैक का ब्लशर-किट मिल रहा था। अरे, होली के लिए मुफ्त में दे रहा था। सब के लिए ले आई।
आम तो पहले ही बौराया हुआ था, वो भी लाया था कहीं कहीं अपने नए गुलाबी-लाल-कत्थई पत्ते, विनम्रता से पेश करते हुए, आदाब से झुकते हुए।
करंज की तो दुकाने लदी पड़ी थी हल्के भीने भीने गुलाबी-बेंजनी आभा वाली रंगो की बोरियों से ।
और भी रंग हैं लेकिन आज किचन में भी तो बहुत काम है, इसलिए बस अभी इतने ही ले लीजिये। और हाँ, सभी रंग ओर्गनिक, हर्बल रंग हैं, जम के रंगे, औरों को रंगाए।